मंगलवार, 29 नवंबर 2011

हम हिन्दुस्तानी जीरोइन नहीं हीरोइन विद 'वी" फिगर


ईसा पूर्व 1500 साल के मिस्र में स्त्रियों का गंजा रहना सुंदरता का प्रतीक माना जाता था। इसके लिए स्त्रियाँ मुंडन करवाती थीं; राजरानियाँ तो बिलकुल सफाचट वाले मुंडन के पश्चात भी सिर पर कोई बाल रह जाते तो सोने के प्लकर से उसे निकलवाती थीं। इसके पश्चात उनकी खोपड़ी क्रीम-तेल लगाकर महीन कपड़े से चमकाई जाती थी। इस तरह पॉलिश से चमकाई बालरहित खोपड़ी वाली महिला सुंदरतम मानी जाती थी। अब इसे क्या कहें? पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना। हर देश, हर समुदाय, हर काल के रहन-सहन और सुंदरता के अपने-अपने मापदंड होते हैं। समय के साथ वे बदलते भी हैं। आज हम वैश्विकता के जिस काल में रह रहे हैं, वहाँ रहन-सहन में आदान-प्रदान बहुत बढ़ गया है। यह एक सुखद परिवर्तन है। आखिर जहाँ जो अच्छा और सुविधाजनक है उसे दूसरी जगह क्यों अपनाया जाए?

आज अमेरिकी औरतें पेंट-सूट के साथ गले में रेशमी स्कार्फ बाँधती हैं, जँचे तो नाक में छेद भी करवा लेती हैं, तो पूर्वी देशों में पाश्चात्य परिधान शौक और सुविधा दोनों के लिए पहने जाते हैं। लेकिन बात यदि केश, कपड़ों और अन्य चीजों की है तो आदान-प्रदान बढ़िया है, मगर सुंदरता के जो पैमाने नस्लगत हैं उनका अपनी बनावट की व्यावहारिकताओं के मद्देनजर होना ही अच्छा है। दूसरों के फीते से अपनी देह नहीं नापी जा सकती, जो कि हम पिछले कुछ सालों से कर रहे हैं और जिसका खामियाजा हमारी लड़कियाँ एनोरेक्सिया बूलिमिया और एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसी बीमारियों की चपेट में आकर चुका रही हैं। भारतीय लड़कियाँ नस्लगत रूप से कर्वी हैं, उनकी देह का आकार-प्रकार है। सीधी रेखा-सी देह और सुपर फ्लैट बेली यानी बिलकुल सपाट पेट हमारे यहाँ सुंदरता की परिभाषा में कभी नहीं रहा। मगर जबसे हमारी लड़कियाँ दूसरों के फीतों से नपकर विश्व सुंदरियाँ बनीं वे आम भारतीय लड़कियों का आदर्श बन गईं। आम भारतीय युवक भी खपच्ची-सी देह को सुंदर मानने लगे। हीरोइनों में जीरो फिगर की होड़ लग गई और जल्द ही यह रोग आम भारतीय स्त्रियों में गया। चूँकि नस्लगत रूप से यह संभव नहीं अत: अधिकांश औरतें स्वस्थ देह के लिए ठीक से डाइट प्लान करने की बजाय पिचकी देह पाने के लिए भूखों मरती रहती हैं। मगर हाल ही में जो फिल्म रिलीज हुई है 'डर्टी पिक्चर" उसमें कहानी की माँग होने की वजह से विद्या बालन ने अपनी कमर उजागर की है। विद्या अपने शास्त्रीय सौंदर्य, प्रभावशाली अभिनय और बेहतरीन संवाद अदायगी के लिए पहले ही जग जीत चुकी हैं। अब वे इस स्थिति में हैं कि वे जो भी करें अन्य स्त्रियों के लिए आदर्श हो। विद्या जीरो फिगर वाली चपटी कन्या नहीं हैं। उनकी देह में भारतीय सौंदर्य है, कल तक जिसे मोटा कहकर नकारा जा रहा था, आज विद्या बालन के आत्मविश्वास की वजह से वह फिर सुंदरता की श्रेणी में गया है। कहा जा रहा है अब जीरो फिगर नहीं 'वी" फिगर चलेगा, विद्या का 'वी" दरअसल, स्त्रियों को कहना चाहिए थैंक्यू-विद्या और अपनी देह को अव्यावहारिक परिणामों के खातिर जलाना बंद कर देना चाहिए और डायटिंग और व्यायाम का सही अर्थ समझकर अच्छे स्वास्थ्य और सुघड़ देह के लिए उचित जीवन जीना चाहिए क्योंकि थुलथुल मोटापा अच्छा है जबरिया कुपोषित सीकियापन।

निर्मला भुराड़िया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें