आपके अक्षर कैसे हैं? लोग धीरे-धीरे इस सवाल को भूलते जा रहे हैं। कम्प्यूटर-की बोर्ड पर उँगलियाँ चलाकर चिट्ठी-पत्र टाइप कर लेने और एसएमएस के जरिए लिखित संदेशों का आदान-प्रदान कर लेने के इस युग में अच्छी हस्तलिपि की परवाह छूटती जा रही है। एक समय था जब यह बेहद महत्वपूर्ण बात मानी जाती थी कि आपके अक्षर कैसे हैं? माता-पिता गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को सुंदर लेखन के लिए प्रेरित करते थे। वे इसके लिए बच्चों को दो लाइन, चार लाइन की कॉफी लाकर देते थे। स्कूलों में शिक्षक बताते थे किस अक्षर का नाप क्या होना चाहिए। वे सुंदर ही नहीं, शुद्ध लेखन के पीरियड भी लेते थे, ताकि बच्चों को कॉमा, पूर्ण विराम, मात्राएँ आदि लगाना ठीक से आए। अंग्रेजी की कक्षाओं में छोटी-बड़ी वर्णमाला, कर्सिव राइटिंग आदि का अभ्यास करवाया जाता था। साफ-सुथरे और शुद्ध लेखन के लिए नंबर अलग से मिलते थे। इस माहौल की वजह से उत्साहित बच्चे अक्षर जमा-जमा कर लिखने का प्रयास करते थे। जिसको मोती से अक्षर की उपाधि मिल जाए वह विद्यार्थी फूला नहीं समाता था। आज हर बच्चा इतना तेज दौड़ने को विवश है कि जमाकर लिखने की न उसे फुरसत है, न ध्यान। शिक्षक को कोर्स पूरा करवाना है, स्कूल का प्रतिशत बढ़वाना है। बच्चे के व्यक्तित्व विकास में स्कूली शिक्षक की भूमिका नगण्य से नगण्यतम होती जा रही है। माँ-बाप भी अब बच्चे की हस्तलिपि सुधारवाना जरूरी नहीं समझते। हाथ से लिखने का काम ही कितना पड़ता है, शायद वे सोचते हैं। मगर, यहीं हम गलत हो जाते हैं। सर्वप्रथम तो भारत में सारी की सारी परीक्षाएँ ऑनलाइन देने का जमाना अभी नहीं आया है। अच्छी हस्तलिपि का परीक्षा में अच्छे नंबर आने से संबंध आज भी है। कॉपी जाँचने वाले शिक्षक पर अच्छी हस्तलिपि का प्रभाव भी होता है और उसकी मगजपच्ची भी कम होती है, पर बात सिर्फ परीक्षा और नंबर की नहीं है। अक्षर सुंदर बनाने से बच्चों का सौंदर्य बोध और कल्पनाशीलता विकसित होती है। सुंदर लेखन अपनी जगह है और मशीनें अपनी जगह। सुंदर लेखन न होने का दोष मशीनों को नहीं दिया जा सकता, न ही मशीनों की वजह से सुंदर लेखन को निरस्त किया जा सकता है। ये दोनों परस्पर दुश्मन नहीं हैं। उदाहरण है दुनिया में पर्सनल कम्प्यूटर क्रांति के जनक स्टीव जॉब्स। जॉब्स ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में केलिग्राफी का कोर्स किया, जो कि कलात्मक-अक्षर-विज्ञान है। अत: उन्होंने जब संसार का पहला पर्सनल कम्प्यूटर एपल मैक बनाया तो उपयोगकर्ताओं के लिए ग्रॉफिक यूजर इंटरफेस बनाई। यानी जो भाषा नहीं जानता वह इमेज के जरिए इसका उपयोग कर सके। बाद में सभी ने यही किया। स्टीव जॉब्स ने सृजन व कल्पना के सौंदर्य और कला को तकनीकी से जोड़ने का जादू किया और आधुनिक समय को आई पैड, टेबलेट पीसी, आई पॉड जैसी चीजें दीं। दरअसल, किसी भी व्यक्ति की रचनात्मकता और सौंदर्यबोध का पहला चिन्ह उसकी हस्तलिपि से ही प्रकट होता है।
आप कितने ही तकनीकी निर्भर या तकनीक निष्णात हो जाएँ, हस्तलेखन का अभ्यास कभी-न-कभी अवश्य किया जाना चाहिए, एक किस्म के व्यायाम की तरह, क्योंकि हाथ से लिखने के लिए जो धीरज चाहिए, वह तेज भागती इस दुनिया में लगभग अनुपलब्ध हैं। आज की दुनिया में हमारा तुरंत किसी से भी संपर्क हो जाता है, हम कहीं भी जल्दी पहुँच जाते हैं। अत: हमारी आदत हो गई है कि सब कुछ तुरंत हो जाए। अपेक्षा अनुसार तुरंत परिणाम न मिलने पर हम खिन्ना हो जाते हैं। इससे हड़बड़ाहट, उद्वेग, एंक्जाइटी का रोग विद्यार्थियों में भी बढ़ रहा है। ऐसे में जमा-जमा कर लिखे अक्षरों में कभी कोई संदेश, कोई चिट्ठी लिखना ध्यान करने के बराबर है। इससे एकाग्रता भी बढ़ती है। आखिर तो लिखावट मस्तिष्क के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और शरीर की मांसपेशियों के तादात्म्य की उपज है। इसीलिए लिखावट कई बार मूड भी बताती है। आप उनींदे हैं तो आपके अक्षर 'आँके-बाँके" आएँगे। आप जल्दी में हैं तो घसीटा मारेंगे। आप अनिच्छुक हैं तो आपकी आड़ी-तेड़ी हस्तलिपि यह बता देगी। इसीलिए कई बार मनोवैज्ञानिक ग्राफोलॉजिस्ट की सेवाएँ भी लेते हैं, जो हस्तलिपि के आधार पर आपका आशावाद, निराशावाद, उतावली, धीरज, आपके भावनात्मक उतार-चढ़ाव आदि को तौलता है। हस्तलिपि विशेषज्ञ तो यह दावा भी करते हैं कि हस्तलिपि के जरिए व्यक्तित्व और मूड दोनों सुधारे जा सकते हैं। इन दावों में कितना दम है पता नहीं, मगर इतना तय है कि अच्छी हस्तलिपि इंसान का सौंदर्य बोध, कल्पनाशक्ति, धीरज अवश्य बढ़ाती है। अच्छी लिखावट एक व्यक्ति के सुरुचिपूर्ण व्यक्तित्व का परिचायक तो है ही।
निर्मला भुराड़िया
बिलकुल सही लिखा है निर्मला जी आपने. कंप्यूटर के आने के बाद से, न केवल नयी पीढ़ी, बल्कि पुरानी पीढियां भी अब हाथ से लिखना कामो-बेश भूलती जा रहीं हैं. _ श्याम श्रीवास्तव
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