बुधवार, 30 मार्च 2011

थोड़ी मिर्च हो जाए!

"आँकी चली, बाँकी चली, चौरंगी में झाँकी चली," दो औरतें खड़े-खड़े धान कूट रही हैं! बड़ी-सी ओखली और लंबा-सा मूसल, इतने बड़े कि वे थक कर हाथ बदलती हैं। दोनों मिलकर कूट रही हैं, कभी दाएँ हाथ से, कभी बाएँ हाथ से, मगर उनके हाथ लय में चलते हैं, मुँह से फूट रहे गाने के बोलों के साथ-साथ। ये औरतें दो सहेलियाँ भी हो सकती हैं, बहनें भी, पड़ोसनें भी और देवरानी-जेठानी या सास-बहू भी। औरतों को एक-दूसरे की दुश्मन ठहराने का कोई मौका न चूकने वाले जमाने ने स्त्रियों द्वारा मिलकर काम निपटाने और साथ में हँसने-हँसाने के इस बहनापे पर कम ही टिप्पणी की है। बहरहाल वे जो बड़े से मूसल से नृत्यमय लय के साथ कूट रही हैं वह धान ही नहीं मिर्ची भी हो सकती है। तब उनके पास श्रम के अलावा मिर्ची की धाँस की भी चुनौती होगी, तब वे खाँसेंगी, मुँह-नाक पर पल्लू रखेंगी, फिर पल्लू कमर में खोंसते हुए हँसेंगी और फिर मिर्चियाँ कूटने लगेंगी। ऐसे नजारे आज भी ग्रामीण भारत में देखे जा सकते हैं।

खैर, हम आएँ मिर्ची की बात पर। मिर्च मुँह में जलन देती है, आँख-नाक से पानी बरसाती है, खाने वाले से हाय-हाय करवाती है, फिर भी मिर्च मजा क्यों देती है? वैज्ञानिकों का कहना है कि मिर्च हमारे शरीर को चुनौती देती है, जिसकी प्रतिक्रिया में सुखबोध पैदा करने वाले हारमोन रिलीज होते हैं। मिर्च का जलनकारी तत्व कैप्साइसीन हमारे दर्द संवेदियों को उद्देपित करता है, जिससे शरीर प्राकृतिक दर्द निवारक उत्पन्ना करता है। कैप्साइसीन से बने दर्द निवारक मलहम भी बाजार में आते रहे हैं। मिर्च लार बढ़ाती है। भोजन को रंग और स्वाद देती है, जिससे भोजन उबाऊ नहीं रहता। कृषि वैज्ञानिकों का अनुभव है कि मिर्च फफूंदरोधी है। आयुर्वेद भी यही कहता है कि मिर्च पाचन संस्थान को जगाए रहती है। हालाँकि ये सब बातें सही तभी हैं जब मिर्ची अल्प या सामान्य मात्रा में ली जाए वरना लेने के देने पड़ सकते हैं। अधिक मिर्च से एसिडिटी तो हो ही सकती है, कुछ मिर्चियाँ तो इतनी मारक होती हैं कि जानलेवा भी हो सकती हैं। कौनसी मिर्ची कितनी तेज है? यह जानने के लिए मिर्ची मीटर होता है, जिसे स्कोविले स्केल कहा जाता है। मिर्ची मीटर बताता है कि नागालैंड की मिर्ची "भूत जोलोकिया" दुनिया की सबसे तेज मिर्च है, जिसे बर्दाश्त करने की ताकत इन पहाड़ियों में ही है। बेल पेपर यानी शिमला मिर्च मिर्ची-मीटर पर बिलकुल नीचे की तरफ है, इसलिए इसे भोंगा मिर्ची भी कहा जा सकता है।

यह सब तो मिर्ची का वैज्ञानिक पक्ष था। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मिर्च इसीलिए पसंद की जाती है कि इसे खाने में चुनौती है। मेक्सिको और अमेरिका के टेक्सास में समय-समय पर मिर्च खाने की प्रतियोगिताएँ भी होती हैं। कई मिर्च-वीर इसमें अपने झंडे फहराने में कामयाब होते हैं। यदि जीवन के संदर्भ में भी देखा जाए तो जैसे "जीवन का नमक" की उपमाएँ दी जाती हैं वैसे ही "जीवन की मिर्च" की उपमा भी दी जाना चाहिए। जो अपने आरामगृह से निकलता है, प्रयोग करता है, परिवर्तन के लिए तैयार रहता है, चुनौती लेता है वह जीवन की मिर्च का मजा लेता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन बोरिंग नहीं होता। जीवन की मिर्च सुखबोध पैदा करने वाले हारमोन रिलीज करती रहती है।

- निर्मला भुराड़िया

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