घरेलू सेविका से बलात्कार के आरोप में फिल्म अभिनेता शाइनी आहूजा को सात साल के कारावास की सजा सुना दी गई है। यह बात और है कि प्रताड़ित ने केस वापस ले लिया था, संभवतः किसी दबाव या लालच में, मगर मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके बयान पहले ही दर्ज हो चुके थे लिहाजा कोर्ट ने अपना फैसला सुना ही दिया। इस सारे मामले में आश्चर्यजनक यह रहा कि शाइनी की पत्नी लगातार उसके पक्ष में रही, जबकि यह अपराध सेविका के साथ-साथ पत्नी के प्रति भी था। ऐसा ही हरियाणा के डीजीपी राठौर के मामले में भी हुआ जब एक चौदह साल की बच्ची रुचिका गेहरोत्रा के साथ यौन दुर्व्यवहार का केस उन पर लगा। राठौर की पत्नी न सिर्फ लगातार उनके बचाव में लगी रहीं, बल्कि कानूनविद् होने के नाते उनके कानूनी बचाव में भी आगे आईं। इन पत्नियों का यह रवैया विचित्र किंतु सत्य है।
पतियों के चरित्र को जितना उनकी पत्नियाँ जानती हैं उतना तो शायद उनकी माताएँ भी नहीं जानतीं! उनके झूठ-सच, उनके चेहरे के बदलते रंग, उनकी खामियाँ और उनकी खूबियाँ वे खूब अच्छी तरह समझती हैं। पति का बाहरी दुनिया से क्या व्यवहार है और असली दुनिया में उसका क्या रूप है यह पत्नी को पति के बारे में और पति को पत्नी के बारे में बखूबी पता होता है। अधिक नजदीकी के कारण उन्हें एक-दूसरे को मुखौटे के पार देखने की सुविधा होती है। अतः जिसकी पत्नी दिल से उसका सम्मान करती है उसमें सचमुच सम्मान करने लायक कोई बात होती है। यदि ऐसी पत्नी पति के बारे में चरित्र का सर्टिफिकेट दे रही है, तो उस सर्टिफिकेट का काफी मूल्य होता है। लेकिन झूठा सर्टिफिकेट देने वाली महिलाओं ने मामले को काफी उलझा दिया है। इससे पतियों के पक्ष में पत्नियों द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट का अवमूल्यन हुआ है। इससे उन पतियों का नुकसान होगा जो सचमुच चरित्रवान हैं, मगर झूठे इल्जाम में फँस गए हैं और उनकी पत्नी पूरी ताकत से उनके पीछे आ खड़ी हुई है, मगर अब पत्नी के सर्टिफिकेट की सचाई कौन मानेगा?
वे पत्नियाँ जो गलत बात में भी और स्वयं के प्रति अपराध के बावजूद पति का समर्थन करती हैं, वे पता नहीं ऐसा क्यों करती हैं, मगर कुछ कयास तो लड़ाए ही जा सकते हैं। जैसे कि पति के विवाहेतर संबंधों के मामले में अक्सर पत्नी उस दूसरी स्त्री को दोष देती है, पति को नहीं। "फलाँ औरत ने मेरे पति पर जादू कर दिया है", जैसी बातें भी वे कहती पाई जाती हैं गोया कि उनका पति तो निर्दोष हो। पति भी पत्नी के सामने इतना भोला बन जाता है जैसे कि उसकी कोई गलती ही न हो। इसमें स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है वाली मानसिकता को नहीं देखा जाना चाहिए। दरअसल जिस पत्नी का पति परस्त्री से संबंध बना ले वह पत्नी मानसिक तौर पर डिनायल मोड में चली जाती है। वह खुद के समक्ष भी यह बात नहीं स्वीकार करना चाहती कि पति ने उस पर किसी और को तवज्जो दी है। इससे उसे गहरा तिरस्कार महसूस होता है। इस तिरस्कार की धार को कम करने के लिए वह खुद को बुद्धू बनाती है कि उसका पति तो उसे चाहता ही है, दूसरी औरत ही उस पर डोरे डाल रही होगी वगैरह! कभी-कभी किसी बहुत अपने की मौत के संदर्भ में भी ऐसा होता है कि सदमाग्रस्त परिजन अपने की मौत हो गई यह मानने से इंकार कर देता है, "नहीं अभी वह जिंदा है, फिर लौटेगा", कहते हुए डिनायल मोड में चला जाता है। तब मनोवैज्ञानिक उसे हकीकत का एहसास कराते हुए रुलाने की चेष्टा करते हैं। पति के चरित्र का अवसान स्त्री को ऐसी ही मरणांतक पीड़ा देता है और कभी-कभी, कोई-कोई स्त्री डिनायल मोड में चली जाती है।
वैसे तो किसी भी स्त्री के लिए पति का अन्यत्र संबंध होना रिजेक्शन का अहसास होता है। वह दूध की मक्खी की तरह महसूस करती है। मगर भारत में स्थिति और भी खराब है, क्योंकि यहाँ समाज ऐसा होने पर पत्नी की गलतियाँ गिनाने लगता है कि फलाँ है ही ऐसी तो उसका पति कहीं मन लगाएगा ही। या पत्नी में ही कुछ कमी होगी जो पति कहीं और गया। यहाँ "भला है बुरा है जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है" टाइप की सीख भी बहुत दी जाती है। गलत बात पर आवाज उठाने वाली पत्नी झगड़ालू करार दी जाती है। फिर बहुत-सी पत्नियाँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी नहीं होतीं वे भी होंठ सीकर बैठ जाती हैं। कुछ पत्नियाँ शंकालु भी होती हैं जो पुरुष के सहज व्यवहार में भी कंकड़ खोजती हैं। मगर आखिर यही कि पति-पत्नी का रिश्ता जितना गहरा है- उतना ही नाजुक भी। यहाँ बाहर से कुछ भी परिभाषित नहीं किया जा सकता। हर जोड़े की अपनी कूट भाषा, अपने संकेत और अपनी अनूठी डिक्शनरी होती है जो सिर्फ वे ही आपस में समझते हैं।
- निर्मला भुराड़िया
Good analysis jiji!
जवाब देंहटाएंवह तो बेचारी ! पत्नी धर्म निभा रही है ,सही विश्लेषण....
जवाब देंहटाएंFantastic post. The closing line was beautiful. The complexities of domestic life ring true here. Couple who are terribly estranged in reality, present a united front outside. This, i guess, is one of the big compromises of a marriage in India, one which is titled greatly in favor of men.
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