प्रसिद्ध अभिनेता चार्ली चैप्लिन के नाती साठ वर्षीय मार्क जॉपलिन ने बावन वर्षीय टेरा टिफेनी से शादी की। उल्लेखनीय यह है कि उन्होंने भारत आकर शादी की, पूरे हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ। यूँ तो कई विदेशी इन दिनों भारत आकर राजस्थान आदि की लोकेशन पर शादी करते हैं, मगर अधिकांश ऐसा मजमेबाजी के लिए करते हैं। नाच-गाना, रॉयल वेडिंग, महल-वहल उन्हें रिझाता है। भारत में शादियाँ इतनी शानदार और विस्तृत होती हैं कि विदेशियों को यह सब कुछ लुभावना लगता है। हालाँकि मार्क जॉपलिन सिर्फ शादी हेतु ही भारत नहीं आए, वे वैसे भी भारतीय संस्कृति से बेहद जुड़ाव रखते हैं। संत तुकाराम के कीर्तनों पर आधारित उनकी किताब प्रकाशित हो चुकी है। तुलसीदास के वे अनुरागी हैं। टेरा भी हरिकथा में भाग लेती हैं।
यह पढ़कर भारतीय गर्व से फूले नहीं समाएँगे कि हमारी संस्कृति में पगा उल्लास-आनंद, मिलनसारिता, कला-प्रेम, मोहक रस्मो-रिवाज बाहरी लोगों को भी इतना आकर्षित करता है। मगर ठहरिए, यह गर्व करने से पहले हम अपना राष्ट्रीय चरित्र भी देख लें, जो हमारी छवि को धूमिल करता है। जब शादी-ब्याह की बात चली है तो उसी के उदाहरण से हम अपनी विसंगतियाँ देखें। अमेरिका में पढ़ने वाला एक लड़का अपने चचेरे भाई की शादी अटेंड करने के लिए हिन्दुस्तान आया था। चूँकि वह बाहर रह चुका था इसलिए उसने अपने विदेशी दोस्तों की नजर से चीजों को देखना शुरू किया। फूलों की सजावट, दूल्हे की शेरवानी, दुल्हन का श्रृंगार, सबके हाथों में रची मेहँदियाँ, गहने, पांडाल, खूब गाना-बजाना, नाचना, खाना-पीना सब कुछ उसने आनंद से चहकते हुए रिकॉर्ड किया अपने दोस्तों को दिखाने के लिए। मगर कुछ देर में उसे लगा रिकॉर्डिंग तो निर्जीव चीज होगी, क्यों न अगले छः माह बाद होने वाली अपनी बहन की शादी में वह अपने दोस्तों को "इंडिया" बुलाए। यहाँ की "एक्जोटिक" शादी दिखाने के लिए। मगर थोड़ी ही देर बाद उसने अपना यह फैसला बदल लिया। किसी काम से वह किचन एरिया में पहुँचा तो गंदगी देखकर उसका भेजा फिर गया। फिर बुफे के वक्त उसने लोगों को जिस गंदगी से खाते और गंदगी फैलाते देखा, और बाद में कप-प्लेट धुलते देखा, उससे उसे लगा वह अपने विदेशी मित्रों को यह भारत दिखाने नहीं बुला सकता। हीरे-मोती के जेवरातों में लकदक करती सेठानियाँ, बड़ी-बड़ी कारें, महँगे डेकोरेशन वाली शादी में भी ऐसी घटनाएँ होती हैं कि लाखों के फूल बिछाकर शादी करने वाले पीछे भयानक गंदगी छोड़ कर जाते हैं। यदि कोई ज्यादा बड़ा सेठ या ज्यादा ताकतवर आदमी है तो वेन्यू देने वाला सिक्यूरिटी डिपॉजिट में से भी नहीं काट सकता। शादी में करोड़ों खर्च करने वाला गंदगी फैलाकर भी अपने पावर का इस्तेमाल करके महज हजारों का सिक्यूरिटी डिपॉजिट बचाने के चक्कर में रहता है। उनके मेहमान ने पान की पीक थूक दी और जगह देने वाले ने शिकायत की तो सामने वाला अपना वीआईपी कार्ड दिखाकर उल्टा उसके सिर पर चढ़ सकता है। एक-दो बार तो बड़ी होटल में भारी सजावट के साथ भव्य पार्टी चल रही थी और होटल के पिछवाड़े से आती पिछली शादियों में फेंके गए पत्तल-दोनों और सड़ रही जूठन की बदबू भीतर तक आ रही थी। भारत में यह भी आम है कि जरा भी ताकत आई तो आदमी सार्वजनिक उद्यान में पार्टी कर लेगा, अपना काम होते ही इस जगह से मुँह फेर लेगा, पीछे छोड़ी गई गंदगी की तरफ ध्यान दिलाओ तो आँखें दिखाएगा। यह तो हुई रईसों की बात। सामान्य आदमी भी कहीं भी तंबू ठोक लेता है, किसी भी वक्त जोर-जोर से लाउडस्पीकर बजाता है। बंद करवाने की कोशिश करो तो झगड़ा करने लगता है। जुलूसों और पार्टियों के बाद पीछे छोड़े गए डिस्पोसेबल कप, आइस्क्रीम की चम्मचें, जूठन के टुकड़े आपको सड़कों पर फैले हुए दिख जाएँगे। जब तक हममें राष्ट्रीय भावना और साफ-सुथरेपन की संस्कृति नहीं आती तब तक शानदार शादियों पर गर्व करना व्यर्थ है।
- निर्मला भुराड़िया
ab har baat me ham bhartiye sahi hote to fir kya baat thi........:)
जवाब देंहटाएंpar ye sach hai, ham aam bhartiyon ko thora responsible to hona hoga...!
par kab tak??
ye pata nahi..!
aapka aalekh achchha laga!
चिन्तन के बिन्दु हैं.
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