शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

यादों की बारात

इसराइल के प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन जब कोमा में चले गए तो उनकी स्मृति लौटाने के प्रयासों में सबसे महत्वपूर्ण प्रयासों की गिनती में थे - उनका मनपसंद भोजन सुँघाना, उन्हें उनके पोते की आवाज सुनाना, उनका मनपसंद संगीत सुनाना। दरअसल हमारी यादें कई रास्तों से दिमाग में दर्ज होती हैं। जैसे घ्राण तंत्र के ‍जरिए ऑलफेक्ट्री मेमोरी, दृष्टि के जरिए विजुअल मेमोरी, कानों के जरिए श्रव्य मेमोरी। इस तरह घटनाएँ, दुर्घटनाएँ, जीवनानुभव, स्पर्श, व्यवहार आदि भी हमारी स्मृति में दर्ज होती हैं। तभी तो ऐसा होता है कि बारिश होती है तो स्कूल खुलने के दिनों की याद आ जाती है। माँ की अनुपस्थिति में माँ की साड़ी से आती खुशबू माँ की याद जगा सकती है। कोई पुराना गाना सुनने पर उस गाने का समयकाल यादों में तैर जाता है।
जैसे यादें तरह-तरह के रास्तों से दिमाग में दर्ज होती हैं वैसे ही दिमाग में भी वे अलग-अलग क्षेत्रों से अलग-अलग विभागों में दर्ज होती हैं। कुछ यादें सुखकारी होती हैं, कुछ दु:खकारी। अच्छा हुआ प्रकृति ने विस्मृति का वरदान मनुष्य को दिया तभी दु:ख की छाया समय के साथ मद्धिम होती है। कटु यादें धुँधली भी पड़ती हैं। हालाँकि दु:ख, दुर्घटना और विपत्ति पर मनुष्य का जोर नहीं है अत: इनसे जुड़ी यादों की तीव्रता कम करने के लिए हमें समय पर ही निर्भर रहना होता है। मगर जो यादें हमारे संवेदना तंत्र के जरिए हममें दर्ज होती हैं उन्हें आचरण के जरिए साधा जा स कता है और दु:खद एवं कटु यादों पर सुखद व अच्छी यादों का प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। जब हम किसी की अच्छी बात के लिए उसके कृतज्ञ होते हैं तो सामने वाले के साथ-साथ अपने मन को भी खुशियों से सजा सकते हैं। अच्छाई को अपनी यादों में दर्ज कर लेते हैं। जब किसी बुरे काम के लिए हम किसी को क्षमा कर देते हैं तो स्मृति तंत्र में लगी गाँठ को खोलते हैं और कटुता को निकासी दे देते हैं। याद है न गाँधीजी के तीन बंदर जो प्रतीक हैं बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो के। यदि इसी तरह आचरण से हम अच्छी यादों का प्रतिशत बढ़ाएँ तो खुशनुमा रहने की प्रवृत्ति विकसित होती है। क्या आपको याद है आपने पिछली बार कब किसी अपने को फूल या चॉकलेट दिया था? या उसे प्यार से छुआ था?

- निर्मला भुराड़िया

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