गुरुवार, 2 जून 2011

लाड़ली लक्ष्मियों को लील रही हमारी क्रूरता


हम सभी जानते हैं कि कई बार कुछ टीवी चैनलों पर बहुत ऊल-जलूल कार्यक्रम आते हैं, इतने असंगत कि अविश्वसनीय लगते हैं। मगर देश में बहुत से भोले-भाले, बाहर की दुनिया को न जानने वाले लोग भी हैं जिनके लिए टेलीविजन ही ग्लोबल-दूत है। ऐसे लोग अविश्वसनीय कार्यक्रमों को भी बहुत गंभीरता से ले लेते हैं। चलती-फिरती आकृतियाँ उन्हें साक्षात लगती हैं और वे हाथ कंगन को आरसी क्या की तर्ज पर वहाँ देखा सब कुछ सच समझते हैं। ऐसे ही दो ग्रामीणों को एक दिन सब्जी बाजार में सुना एक-दूसरे से बात करते हुए। वे दोनों एक मकान के ओटले पर बैठे हुए थे। एक ने दूसरे को बताया, 'भैया मैंने कल टीवी पर देखा एक गाँव में एक बाबा ने एक आदमी की छोरी को छोरे में बदल दिया। वो आदमी इतना खुस हुआ, इतना खुस हुआ कि पूछो मत। देखो क्या किस्मत वाला था वो भी!"
दूसरे आदमी ने इस पर क्या जवाब दिया, टीवी वालों को ऐसे कार्यक्रम बताना चाहिए कि नहीं, या हो सकता है दिखाया कुछ और हो और ग्रामीण को कुछ गलत समझ आया हो। जो भी हो इस सबकी विगत में जाने की जरूरत भी नहीं है। यहाँ जो गौर करने की बात है वह यह है कि क्या आपकी लड़की लड़के में बदल जाए तो यह खुश होने की बात है। क्या यह अच्छी किस्मत थी कि तथाकथित रूप से बेटी बेटा हो गई! बेटी के बेटे में बदल जाने जैसी घटना तो खैर नहीं हुई होगी, पर ग्रामीणों के ये उद्गार बेटियों के प्रति हमारी मानसिकता बताते हैं। बेटी यानी बदकिस्मती! बेटा यानी खुशी, किस्मत!
यह तो थी ग्रामीण व्यक्ति की बातचीत। अब एक मध्यमवर्गीय शहरी परिवार की बात करें। पिछले दिनों एक प्रसूतिगृह के जनरल वॉर्ड का फेरा लगाने का मौका आया। वहाँ एक सद्य:माता युवती लगातार रो रही थी। आसपास वालों ने बताया, 'इसको तीसरी लड़की हुई है। इसके सास-ससुर को सूचना देने के लिए फोन लगाया था मगर वे बात करने को भी तैयार नहीं हैं। पति भी मिलने नहीं आया है। वह माँ-बेटी का मुँह नहीं देखना चाहता। इसलिए यह रो रही है।" एक और घटना में तीसरी बेटी हो गई, तो प्रसूता की माँ तक को फोन करके सूचना नहीं दी गई। इतनी बेमोल और बेकार समझी जा रही हैं बेटियाँ। ऐसा भी नहीं कि यह अशिक्षित लोगों का सोच है या दहेज के विचार से डरा मध्यम वर्ग ही बेटी के प्रति ऐसा रवैया रखता है। नए आंकड़ें बता रहे हैं कि कन्या भ्रूण हत्या में पढ़े-लिखे और अमीर भारतीयों की संख्या भी बहुत है। कानूनन नाजायज होने के बावजूद लिंग परीक्षण करवाकर गर्भपात हो रहे हैं। सरकारों की नाक के नीचे लाड़ली लक्ष्मियाँ रोज कैसे मरवाई जा रही हैं यह सचमुच सोचने की बात है। लिंग परीक्षण के बाद कन्या भ्रूण की हत्या में कोई डॉक्टर और पालक जेल जाता तो दिखता नहीं। कुछ छोटी मुर्गियाँ फँसी भी होंगी पर बड़े खिलाड़ी ले-देकर या संपर्कों के बल पर बच जाते हैं। इसलिए खेल चलता रहता है। जहाँ तक समाज की बात है कई लोग तो कन्या भ्रूण हत्या को अपराध तक नहीं मानते। वे तरह-तरह के तर्कों से स्त्री भ्रूण हत्या को सही साबित करने पर तुले रहते हैं! इसीलिए कानून बन जाने के बावजूद कुछ होता नहीं दिखता, क्योंकि हम अपनी मानसिकता बदलने को तैयार नहीं। सात समंदर पार जाकर भी हमारी मानसिकता नहीं बदलती। आँकड़े बताते हैं कि अप्रवासी भारतीय भी जेंडर सिलेक्शन करवाते हैं। स्त्री भ्रूण होने पर भ्रूण नष्ट करवा लेते हैं। यह सब सचमुच शर्मनाक है।
- निर्मला भुराड़िया

1 टिप्पणी:

  1. ye sab ho raha hai kyoki hum in Khabro ko jyada tavajjo dete hai .aaj hamare likha hue se kya pratikriya hogi is baat ko samjh ne ki jarurat hai in khabro ko jagah dene se pratikriya positive nahi hogi.prati kriya aane vaali khabre Ye hai....
    1/-CBSC or Bord ki pariksha me ladkiyo ne baaji mari
    2/- Ladki ne Baalo se Trak Kheech kar banaya world record.Etc......
    aur aapki is khabar ki prati kriya ho gi.......
    YE KON SA PAHALI BAAR HO RAHA HAI........

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