कहावत है पहला सुख निरोगी काया। सच है अच्छे स्वास्थ्य से बड़ी नियामत क्या हो सकती है? हर इंसान चाहता है और कोशिश करता है कि वह स्वस्थ रहे, मगर देह है तो बीमारियाँ भी हैं, तमाम सावधानियों के बावजूद बीमारियाँ आती हैं। आज चिकित्सा विज्ञान ने काफी उन्नाति कर ली है। बहुत-सी बीमारियाँ अब लाइलाज नहीं रहीं, समय पर सही इलाज करने पर वे ठीक भी हो जाती हैं या नियंत्रित हो जाती हैं। तरह-तरह की सर्जरियाँ जादुई तरीके से काम कर रही हैं। डॉक्टर दिल को शरीर से निकाल कर ठीक करके वापस शरीर में लगा देते हैं। और भी बहुत कुछ। यह सब भारत में भी हो रहा है। लेकिन भारत में कई इलाकों में अच्छी और तत्पर चिकित्सा आज भी एक स्वप्न ही है। चिकित्सा में एक और चीज है जिसमें भारत पीछे है- वह है पेलिएटिव केयर। पेलिएटिव केयर चिकित्सा विज्ञान की एक ऐसी शाखा है, जिसके विशेषज्ञ मरीज की संपूर्ण राहत और दर्द मुक्ति के लिए काम करते हैं। जिस बीमारी का इलाज चल रहा है वह तो चलता ही है, पेलिएटिव केयर विभाग बीमारी के सहप्रभावों जैसे जी मितलाना, थकान, भूख में कमी, तनाव, दर्द, साँस लेने में तकलीफ जैसे लक्षणों से मरीज को राहत दिलाने का काम करता है। मरीज के प्रशनकूल मन को शांत करना भी पेलिएटिव केयर में आता है। क्या मैं ठीक हो जाऊँगी, क्या फलाँ दवा लेने से जी तो नहीं मितलाएगा? क्या इसके साथ जी न मितलाने की दवा लेना है? खून की रिपोर्ट में तो कुछ नहीं आया फिर गला क्यों दुख रहा है आदि। दरअसल पेलिएटिव केयर का काम मरीज की चिंताओं, भय और असुरक्षाओं का भी शमन करना है। पेलिएटिव केयर चिकित्सक और नर्स में इसीलिए करुणा और धैर्य जैसे गुणों की भी अनुशंसा की जाती है। यही नहीं, कई मरीजों में दर्द-निवारकों को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ भी होती हैं, जैसे फलाँ दवा की आदत तो नहीं हो जाएगी? ऐसा तो नहीं होगा, वैसा तो नहीं होगा। यह मानसिकता भी मरीज की दर्द मुक्ति की राह में बाधा बन जाती है। पेलिएटिव केयर ऐसे मरीज को वैज्ञानिक तरीके से बात समझाने की जिम्मेदारी भी लेती है। यही नहीं, दर्द का इलाज यहाँ अलग से किया जाता है, मूल बीमारी के डॉक्टर द्वारा किए जा रहे इलाज के अतिरिक्त। इसमें मरीज को दर्द-प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि हम यह गौर ही नहीं करते कि मरीज का संत्रास निवारण भी अपने आपमें देखभाल का एक हिस्सा है, बीमारी के डॉक्टर को दिखलाकर झट से कह दिया जाता है इलाज चल तो रहा है! आपका चिकित्सक आपका इलाज कितनी भी अच्छी तरह से कर रहा हो, उसका फोकस मूल बीमारी पर ही अधिक होता है। बाकी चीजों से मरीज जूझता रह जाता है। पेलिएटिव केयर में मरीज से जुड़ी शारीरिक ही नहीं मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और पारिवारिक स्थितियों पर भी सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाता है।
कैंसर जैसी बीमारियों में भारत में भी अब सपोर्ट ग्रुप्स भी बन रहे हैं। इनमें भी एक किस्म से पेलिएटिव चिकित्सा हो जाती है। लोग एक दूसरे को अपने साथ हुए लक्षणों और उनके इलाज को बाँटते हैं, मगर अन्य बीमारियों में नहीं। मरीज की बीमारी दूर करने के साथ ही उसके भय, चिंताएँ और खास करके उसके दर्द और संत्रास को दूर करना भी एक लक्ष्य है, यह बात परिवार, समाज और चिकित्सा विज्ञान को जरूर सोचना चाहिए।
- निर्मला भुराड़िया
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