खुद के भीतर ही यह भ्रम बनाए रखने के लिए कि वह बूढ़ा नहीं हुआ है, इस प्रकार का पुरुष अपने से बेहद कम उम्र की लड़कियों से देह संबंध बनाने को लालायित रहता है। इसमें वासनाओं से ज्यादा बड़ा हाथ इस अहंकार का होता है कि पुरुष भी भला बूढ़ा होता है? कम उम्र की लड़कियों से संबंध बना सकने में वह अपना पौरुष देखता है। डींग हांकने का मौका देखता है। निश्चित ही सभी पुरुष ऐसे नहीं होते, पर जो होते हैं उनके शब्दकोष में उम्र की मर्यादा नाम का शब्द नहीं होता। आखिर किसी न किसी बिंदु पर आकर तो मनुष्य को यह मानसिकता बना ही लेना चाहिए कि अब मैं इस उम्र का हो गया हूं। यह स्वीकार करना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं। उम्र की मर्यादा और रिश्तों की गरिमा नाम की भी कोई चीज होती है। नहीं होती तो हम इंसान नहीं पशु होते। अपनी जो भी उम्र है उसे गरिमा से स्वीकार करना स्त्री हो या पुरुष हर एक के लिए जरूरी है ताकि हमारी सामाजिकता आदिम वहशीपन में न बदले। स्त्री और पुरुष के बीच देह का ही रिश्ता हो यह जरूरी नहीं। मां, बहन, बेटी, दोस्त-वह कुछ भी हो सकती है। रिश्तों की भावनाओं में देह को न घसीटना और रिश्तों की पवित्रता का सम्मान करना यह भी इंसानी गुण ही है। गुरु-शिष्या और बॉस-मातहत के संबंध हैं तो उनकी भी अपनी गरिमा है जिसकी रक्षा किया जाना जरूरी है। गुरु, बॉस या मेंटर होना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, इसे छिछलेपन में कतई नहीं धकेला जा सकता। क्या लेखक-पत्रकार तरुण तेजपाल ने यह भी नहीं सोचा होगा कि कोई लड़की उनकी पुत्री की सहेली है तो उनकी भी पुत्री समान हुई। ऐसा सोचने में तो मानो लोगों की मर्दानगी को ठेस पहुंच जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ लोग अपनी पोती की उम्र की लड़की को भी 'बेटा" संबोधन से पुकारने से बचते हैं, शर्माते हैं। इधर एक अधेड़ कवि ने भी अपनी कविता भेजी है जो एक षोडषी के अंग-प्रत्यंग का वर्णन है। यह जवान थे तब भी लड़की की देह गंध पर कविता लिखते थे, अब भी उन्होंने विषय परिवर्तन नहीं किया है। यह हास्यास्पद और शर्मनाक दोनों ही है। क्या पुरुष स्त्री के लिए सिर्फ एक भोगी है और कुछ नहीं? अक्सर ये खबरें आती हैं कि सौतेले पिता ने बेटी के साथ दुष्कर्म किया। क्या रक्त संबंध न होते हुए भी, वह उसकी मां के साथ शादी करके लड़की का पिता नहीं हो गया? इस तरह के पुरुष अपने साथी पुरुषों का भी नुकसान करते हैं। समाज में अविश्वास का वातावरण बनने पर सचमुच गरिमामय पुरुषों पर भी जमाना विश्वास नहीं करेगा। लंपट पुरुष, पुरुष जात का ही नाम खराब करते हैं।
बुधवार, 27 नवंबर 2013
पुरुष जात का नाम खराब करने वाले
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u rite nirmala ji
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ अब ... अपने पुरुष होने में शर्मिंदगी का एहसास होता हे !
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