गुरुवार, 24 मई 2012

बड़ी चीज तो वफादारी है


बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण और ध्यान आकर्षित करने वाला फैसला दिया है। एक महिला ने गिरीश नामक एक पुरुष पर आरोप लगाया था कि उसने शादी का प्रलोभन देकर उससे शारीरिक संबंध बनाए। इसका हवाला देकर अब वह गिरीश पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी। कोर्ट ने निर्णय दिया है कि किसी महिला की पवित्रता को उसकी संपत्ति नहीं माना जा सकता। और कोर्ट ने गिरीश को जमानत भी दे दी।
उक्त महिला को चाहे यह फैसला स्वयं के खिलाफ लग रहा हो, और व्यक्तिगत तौर पर उस महिला की हार हुई मगर गौर से देखें तो यह फैसला महिलाओं के हक में है। इस उदाहरण में शादी के वादे के बावजूद शादी करने से वादाखिलाफी और धोखे का मानसिक दुख महिला को अवश्य पहुँचा होगा। मगर जहाँ तक कौमार्य हरण का सवाल है तो यह आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध का मामला था। वर्जिनिटी कोई संपत्ति नहीं है। वर्जिनिटी को औरत का गहना मानने के कारण तो औरतों को बहुत दु: उठाने पड़े हैं। आज भी कई समुदायों में औरतें सतीत्व परीक्षण से गुजरती हंै। नव वधुओं को पति के शक का सामना करना पड़ता है कि कहीं पत्नी ने कौमार्य विवाह पूर्व ही खो तो नहीं दिया है? बलात्कार को सिर्फ एक दुर्घटना माना जाता तो कोई किसी भाई, पिता या पति से बदला लेने के लिए उसकी बहन, बेटी, पत्नी से बलात्कार नहीं करता। मगर कौमार्य, सतीत्व, पवित्रता जैसी अवधारणाओं ने औरतों की पवित्रता को औरत का ही नहीं उसके रिश्ते के पुरुषों के लिए भी अमूल्य रत्न की उपमा देकर, इसे इतनी कमजोर नस इतनी नाजुक चीज बना दिया कि बदला लेने के लिए सिर्फ इसे छू कर तड़काने भर की देर है और सामने वाला ध्वस्त हो जाए। महिलाओं की तथाकथित शुद्धता के चलते ही ऐसी मिसालें भी सामने आई हैं कि किसी फिल्मी दृश्य में या सचमुच में कोर्ट या खाप पंचायत ने कह दिया हो कि लड़की की बलात्कार करने वाले से ही शादी कर दो क्योंकि दैहिक संबंध बनने से कौमार्य इसी को अर्पित हुआ! कौमार्य एक गहना है वाली अवधारणा के कारण ही बलात्कार की शिकार महिलाएँ अपने पर हुए अत्याचार की शिकायत खुलकर नहीं कर पातीं। जमाना उन्हीं को अपवित्र मान लेता है! पवित्रता को औरत का गहना मानने का यह नुकसान होता है कि हिंसा करने वाला शिकायत और सबूत के अभाव में छुट्टा घूमता है और शिकार के लिए कहा जाता है उसकी इज्जत चली गई, आबरू लुट गई!
कहते हैं सभ्य समाज (असभ्य समाज) में औरत की वर्जिनिटी को लेकर इतनी रक्षालु और शंकालु प्रवृत्ति राजाओं और जमींदारों के घर से शुरू हुई होगी। वहाँ जहाँ एक राजा की तीन सौ पैंसठ रानियाँ हुआ करती होंगी। राजा का पुत्र आगे चल कर गद्दी पर बैठता होगा। तबके सत्ताधारी को यह भय सताता होगा कि रानियों के माध्यम से किसी और की संतान गद्दी पर बैठ जाए! और बड़े घर की औरतों की वर्जिनिटी इतना बड़ा मुद्दा बन गई। दुर्भाग्य से लेडी डायना को भी विवाह पूर्व वर्जिनिटी टेस्ट करवाना पड़ा था। अब जमाना बदला है। औरत किसी की संपत्ति है उसकी वर्जिनिटी उसका अमूल्य गहना। रही पितृत्व परख की बात तो अब डीएनए टेस्ट है। अब पुरुष भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता। दैहिक संबंध बनाया है तो संतति की जिम्मेदारी दोनों की ही है। पहले अक्सर हिन्दी फिल्मों में डायलोग होते थे गर्भवती औरत हाथ जोड़ती हुई उपस्थित होती थी, 'मुझे अपना लो, तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।" विलेन ठोकर मार कर कहता था 'जाने किसका पाप लिए घूम रही हो।" अब ऐसा नहीं हो सकता विलेन के लिए कोर्ट का आदेश जाएगा कि इसे पकड़ो और माने तो जबरन खून का सैंपल ले लो! तो जनाब विज्ञान की प्रगति के इस जमाने में बहुत सी बातों के प्रति हमारा नजरिया बदलना जरूरी है। औरत की पवित्रता को संपत्ति मानना भी उनमें से एक है। वर्जिनिटी नहीं, वफादारी बड़ी चीज है किसी भी रिश्ते में। वह तो एक बार रिश्ता बनने के बाद स्त्री और पुरुष दोनों में ही होना चाहिए। 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें