जब दो जानकार अपने विषय के बारे में बात कर रहे होते हैं या ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे होते हैं, तब उन्हें एक-दूसरे को बहुत अधिक समझाकर कहने की आवश्यकता नहीं होती। मगर यदि जानकार गुरु है और सामने वाला शिष्य, तब जानकार को यह बात जेहन में रखना जरूरी होती है कि बिलकुल बुनियादी बातें भी बताना पड़ेंगी। कठिन बातें सरल और रोचक ढंग से समझाना होंगी।
गुरु का बात कहने का रसपूर्ण तरीका और छोटी-छोटी बातें भी समझाने का धीरज जरूरी होगा। अक्सर सिखाने वाला यह बात भूल जाता है और सीखने वाले पर झल्लाने लगता है कि अरे इतनी छोटी-सी बात भी समझ नहीं आ रही! मूर्ख, भोट आदि की पदवी भी जल्दबाज शिक्षक अपने शिष्य को दे डालता है। वस्तुतः नासमझ तो वह खुद होता है जो यह नहीं जानता कि डंडे से सिर फोड़कर उसमें ज्ञान नहीं भरा जा सकता। कई विषय पढ़ने वालों को रुखे-सूखे भी लगते हैं इसलिए भी विद्यार्थी उन्हें ग्रहण करने में रुचि नहीं रखता। गणित जैसे विषय भी होते हैं जिनका इतना भय विद्यार्थी के मन में भर दिया जाता है कि वे सीखने के पहले ही विषय से आतंकित होते हैं। लिहाजा गणित-ग्रंथि की वजह से गणित नहीं सीख पाते। इन्हें यदि भास्कराचार्य द्वितीय जैसे गुरु मिल गए होते तो गणित इनके लिए इतना बड़जब दो जानकार अपने विषय के बारे में बात कर रहे होते हैं या ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे होते हैं, तब उन्हें एक-दूसरे को बहुत अधिक समझाकर कहने की आवश्यकता नहीं होती। मगर यदि जानकार गुरु है और सामने वाला शिष्य, तब जानकार को यह बात जेहन में रखना जरूरी होती है कि बिलकुल बुनियादी बातें भी बताना पड़ेंगी। कठिन बातें सरल और रोचक ढंग से समझाना होंगी। गुरु का बात कहने का रसपूर्ण तरीका और छोटी-छोटी बातें भी समझाने का धीरज जरूरी होगा। अक्सर सिखाने वाला यह बात भूल जाता है और सीखने वाले पर झल्लाने लगता है कि अरे इतनी छोटी-सी बात भी समझ नहीं आ रही! मूर्ख, भोट आदि की पदवी भी जल्दबाज शिक्षक अपने शिष्य को दे डालता है। वस्तुतः नासमझ तो वह खुद होता है जो यह नहीं जानता कि डंडे से सिर फोड़कर उसमें ज्ञान नहीं भरा जा सकता। कई विषय पढ़ने वालों को रुखे-सूखे भी लगते हैं इसलिए भी विद्यार्थी उन्हें ग्रहण करने में रुचि नहीं रखता। गणित जैसे विषय भी होते हैं जिनका इतना भय विद्यार्थी के मन में भर दिया जाता है कि वे सीखने के पहले ही विषय से आतंकित होते हैं। लिहाजा गणित-ग्रंथि की वजह से गणित नहीं सीख पाते। इन्हें यदि भास्कराचार्य द्वितीय जैसे गुरु मिल गए होते तो गणित इनके लिए इतना बड़ा हौवा नहीं होता। गणित लड़कियों का विषय नहीं, लड़के और लड़की के दिमाग को भी वीनस और मार्स में बाँटने वाले समाज ने यही बताया। पर यह भी सच नहीं। यह भास्कराचार्य के बारें में जानने से पता चल जाएगा।
ईस्वीं सन् ग्यारह सौ चौदह में जन्मे भास्कराचार्य को संसार के एक महान गणितज्ञ के रूप में जाना जाता है। भास्कराचार्य ने अपनी बेटी लीलावती को गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो पद्य में होते थे। वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे। उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे। कंठस्थ करने के पहले भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में, धीरे-धीरे समझा देते थे। वे बच्ची को प्यार से संबोधित करते चलते थे, "हिरन जैसे नयनों वाली प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र हैं...।" बेटी को पढ़ाने की इसी शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने "लीलावती" रख दिया। बादशाह अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् १५८७ में "लीलावती" का फारसी भाषा में अनुवाद किया। अंग्रेजी में "लीलावती" का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् १७१६ में किया। कुछ समय पहले तक भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे कि पन्द्रह का पहाड़ा ...तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के नब्बे... अट्ठबीसा, नौ पैंतीसा...। इसी तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय सूत्र में था, "सि अप जूनो तीस के, बाकी के इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे सन् उनतीस!"
अर्थशास्त्र जैसा विषय भी कइयों को रुखा-सूखा और कठिन लगता है। इसे भी कुछ लोग कॉमिक्स के जरिए समझाने का प्रयास कर रहे हैं। रॉयल सोसायटी फॉर द एनकरेजमेंट ऑफ आर्ट्स जैसी संस्थाएँ ऑनलाइन प्रेजेंटेशन कर हल्के-फुल्के चित्रों के माध्यम से अर्थशास्त्र समझा रही हैं। पूँजीवाद का संकट जैसे विषय कार्टूनों के जरिए रोचक व सरलीकृत ढंग से समझाए जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर नैन्सी फाल्बर "फेमिनिस्ट इकॉनॉमिक्स" की पुरोधा हैं। यानी वे अर्थशास्त्र के उन िवषयों से जुड़ी हैं, जो महिलाओं और आम आदमी से संबंधित हैं, बड़े जटिल व्यापारों और व्यापारियों से नहीं। नैन्सी की सारी रिसर्च महिलाओं के दृष्टिकोण को आर्थिक विश्लेषणों में शामिल करने व घरेलू और सामाजिक अर्थशास्त्र को लेकर है। नैन्सी भी इकॉनॉमिक्स कॉमिक्स की पक्षधर हैं। तात्पर्य यही कि धीरज और रसबोध बहुत महत्वपूर्ण है। साहित्य और कला के माध्यम से तथाकथित रूप से जटिल विषयों को भी रोचक और सरल बनाया जा सकता है। हाँ यह ठीक है कि कभी-कभी कोई व्यक्ति किसी विषय में कमजोर होता है, दूसरे विषयों में तेज होने के बावजूद।
गणित का डिसलेक्सिया यानी केलकुलेक्सिया भी कुछ लोगों को होता है। धीरजपूर्ण और रोचक तरीके से तो ऐसे लोगों को भी िवषय पढ़ा िदया जाता है। जैसे अपनी िफल्म 'तारे जमीं पर' में आमिर खान डिसलेक्सिक बच्चे को भी स्पेलिंग बनाना सिखा देते हैं। विषयों की समझ को लेकर चलने वाला लिंगभेदी सोच, फोबिया, सामाजिक पूर्वाग्रह आदि सिखाने के सही तरीके से दूर हो सकते हैं। बशर्ते स्कूलों के मैनेजमेंट शिक्षक को अपने तरीकों से पढ़ाने दें और शिक्षक भी पढ़ाने के नाम पर बला न टालें, नवीनता की खोज करें, मौलिकता अपनाएँ।
- निर्मला भुराड़िया
गणित तो रोचक विषय है .. पर बहुतों को यह कठिन भी लगता है !!
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