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अब दूसरा किस्सा। उनके यहाँ पुत्र ही हुआ था, पुत्री नहीं। अत: उत्साह भरे वे सज्जन खुद ही आए थे शुभ समाचार देने। समाचार सुनकर हमने उन्हें जैसे ही कहा, 'बधाई', तो उन्होंने अपनी उल्लासित खींसें निपोरते हुए खीसे में खुसे नोट निकालकर हमारी ओर बढ़ा दिए। 'यह क्या, नोट थोड़े ही माँगे थे, मैंने तो सिर्फ बधाई दी थी।' 'नहीं-नहीं', उन सज्जन की धर्मपत्नी यानी नवजात शिशु की दादी ने नोट वापस करते हुए मेरे खुली हथेलियों की फिर मुट्ठी बना दी। मेरी उँगलियों को मोड़कर उनमें नोट पुन: बंद करते हुए उन्होंने कहा, 'अरे रख भी लो, बधाई ऐसे ही दी जाती है।' ना-नुकर के बीच उन्होंने प्रथा की पूरी परिभाषा स्पष्ट की- 'इसे बधाई माँगना कहते हैं। किसी के घर बेटो हो तो अपने वाले बधाई माँगते हैं, तो उन्हें पैसे दिए जाते हैं।' अब इन्हें क्या कहें, यहाँ तो बधाई शब्द का समूचा अर्थ ही बदल गया था।
एक अन्य किस्से में वधू के लिए बरसों खोज-बीन के बाद उनके बेटे की शादी हुई थी। शादी में जाना नहीं हुआ तो घर जाकर नई-नवेली बहू के लिए बधाई दी, 'बधाई, ठीक से सब शादी-ब्याह निपट गया। आपके लड़के के लिए अच्छी लड़की मिल गई।' यहाँ भी लड़की की सास ने बधाई मानो बैरंग लौटा दी यह कहते हुए कि 'अच्छी है कि नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा। अभी तो सब अच्छा ही अच्छा लगता है।'
एक के यहाँ बालक का जन्म हुआ। दूसरे शहर से इस शहर में आने वाले परिचित को पता चला कि उनके यहाँ नया सदस्य आया है, तो वे समय िनकालकर मिलने चले गए और परिवार को बच्चे के जन्म पर बधाई दी। उनके 'बधाई' कहते ही बालक के पिता ने चुटकी ली, 'क्या मुन्ना के अंकलजी, सेंत-मेंत की ही बधाई दे रहे हो मुन्ना को।' सेंत-मेंत से नवजात बच्चे के िपता का तात्पर्य था मेहमान के खाली हाथ आने से। बेचारे मेहमान अपरिचित शहर में जैसे-तैसे वाहन जुगाड़कर बधाई देने आए और पानी-पानी होकर गए।
कितनी सीधी-सादी-सी औपचारिकता है बधाई, जिसका सीधा-साधा-सा उत्तर है धन्यवाद। मगर इस सीधी-सी बात को भी हमने दुनियाभर के रूढ़िवाद, भौतिकवाद में बदलकर महज लेन-देन, दिखावा और झंझट बना लिया है। बधाई और धन्यवाद जैसी अभिव्यक्तियाँ दूसरों की खुशी में खुश होने के लिए और अपनी खुशियों में समाज को शामिल करने के लिए हैं। इनका सबंध न तानों-तस्कों से है, न तोहफों से, न ही हरे-हरे नोटों से।
यह समाज है क्या कीजिएगा.....अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंhttp://veenakesur.blogspot.com/
बधाई और धन्यवाद जैसी अभिव्यक्तियाँ दूसरों की खुशी में खुश होने के लिए और अपनी खुशियों में समाज को शामिल करने के लिए हैं। इनका सबंध न तानों-तस्कों से है, न तोहफों से, न ही हरे-हरे नोटों से।
जवाब देंहटाएंपर गलत अर्थ लगानेवालों का क्या किया जाए ??
mai sangeetaji ki baat se sahmat hu..logo ki aapni-aapni soch hoti hai...
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