सोमवार, 27 सितंबर 2010

जैसा आए वैसा

नृत्य और संगीत भारतीय जनजीवन में हमेशा से रचा-बसा रहा है। औरतें घट्‍टी पीसतीं या धान कूटतीं तो भी गाती जाती थीं। ग्वाला सुबह दूध देने निकलता तो गाता। फकीर खंजरी बजाते, बहुरूपिए सिर पर बड़ की डाल रखकर नाचते और भिक्षाटन करते। शादी-ब्याह हो या ‍िशशु जन्मोत्सव या फिर प्रभु कीर्तन ही हो, बगैर ढोल-मंजीरे या थिरकन के हमारे यहाँ कुछ भी पूरा नहीं होता और कल क्यों आज भी पूरा नहीं होता। लेकिन नृत्य-गीत के आनंद में मन की मौज के ऊपर हाल ही के वर्षों में कृत्रिमता हावी हो गई है।

एक मालवी ग्रामीण स्त्री जो अकसर कहा करती थीं, 'बाई ढोलकी बजे तो म्हारा पाँव, रुकी नी सके।' यह स्त्री आज के माहौल में ‍िनर्मुक्त हो नाचने के लिए तरस जाती है। क्योंकि शादी-ब्याह तक में बँधी-बँधाई औपचारिक मंच प्रस्तुतियों के बीच उसे उल्लासित हो नाचने का मौका ही नहीं मिलता। यहाँ तक कि अपने पोते की शादी में ही व नहीं नाच पाई! वजह? इन दिनों शादी-ब्याह का उल्लासित नृत्य-गान भी ‍िकसने कैसे नाचा, किसने कैसी तैयारी की, किसने रिहर्सल पर ‍िकतना वक्त ‍िदया, किसने क्या परिधान पहना, किसने कैसा मंच सजाया, किसने ‍िकतने हजार का घाघरा-चुन्नी पहना जैसी प्रतिस्पर्धाओं में बदल दिया गया है। परफॉरमेंस का तनाव और अपेक्षा शादी से जुड़े नृत्य-गान के उल्लास पर इतनी हावी हो गई है कि उसने नाचने की झक सफेद उमंग को मलिन कर ‍िदया है, एक किस्म की प्रतिस्पर्धा में बदल दिया है।

लेकिन उपरोक्त परिदृश्य के विपरीत अभी एक नजदीक की शादी में बदलाव की मीठी बयार का एक झोंका महसूस किया। उन लोगों ने गीत-संगीत की एक शाम रखी थी लेकिन वह निमंत्रण-पत्र की औपचारिक सूची में नहीं थी। जाहिर है, नाच-गान और उल्लास से भरी यह शाम आमंत्रितों के लिए नहीं बेहद अपने वालों के लिए थी। मंच पर मन का उल्लास प्रकट करने के लिए भी रिश्तेदारों में से चुनकर सधे हुए, गुणवान कलाकारों की ‍िनयुक्ति नाचने-गाने के लिए नहीं की गई थी, बल्कि उन लोगों ने जैसा भी आया वैसा नाचा-गाया, जो दोस्त थे, भावनात्मकता से भरे हुए थे। सारा माहौल 'इमोशनली चार्ज्ड' हो गया। भावनाओं की बाढ़ ने नाचने-गाने का आनंद द्विगुणित कर दिया। तालियों में अश्रुकण भी शामिल हो गए। सारा माहौल उल्लास और अपनत्व से सराबोर हो गया। है न यह आज के जमाने के महिला-संगीत कार्यक्रमों के 'कठपुतली नाचों' से बेहतर! आखिर मंगल उत्सवों का नाच-गान उमंग, उल्लास और गहरी भावनात्मकता की सहज अभिव्यक्ति के लिए है। इसे हम 'तेरी कमीज, मेरी कमीज से उजली क्यों?' में क्यों बदलें?

- निर्मला भुराड़िया

2 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर मंगल उत्सवों का नाच-गान उमंग, उल्लास और गहरी भावनात्मकता की सहज अभिव्यक्ति के लिए है। इसे हम 'तेरी कमीज, मेरी कमीज से उजली क्यों?' में क्यों बदलें?
    सहमत !!

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  2. 'तेरी कमीज, मेरी कमीज से उजली क्यों?' में क्यों बदलें? sahi baat hai...

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