दिल्ली में हुई
गैंग रैप
की घटना
के बाद
से देश
उबल रहा
है। इसे
इस घटना
विशेष की
ही प्रतिक्रिया
नहीं माना
जाना चाहिए।
इस घटना
ने तो
ढक्कन खोल
लिया है।
भीतर ही
भीतर तो
देश सदियों
से उबल
रहा था।
यह कहना
सरासर गलत
होगा कि
बलात्कार की
घटनाएं अब
बढ़ गई
हैं। वे
दिख रही
हैं क्योंकि
वे सामने
आ रही
हैं। पहले
ऐसी हर
घटना घर-परिवार, समाज-परिजन द्वारा
दबा दी
जाती थी।
अब भी
अधिकांश मामलों
में परिजनों
को यही
करना होता
है, क्योंकि
हमारा असंवेदशील
समाज शिकार
से ही
त्याज्य सा
व्यवहार करता
है। बलात्कार
क्यों होते
हैं इसके
लिए भी
सारा दोष
महिलाओं पर
मढ़ने वाले
झूठे, असंवेदनशील
और दंभी
और तर्क
दिए जाते
हैं। सही
कारणों में
जाने का
कष्ट कम
ही किया
जाता है
क्योंकि दोष
की मटकी
फोड़ने के
लिए लड़कियों
का सिर
तो है
ही। तुमने
फलां कपड़े
पहने थे,
तुम वहां
क्यों गई
थी वगैरह।
बजाए इसके
सही कारणों
में जाना
जरूरी है,
ताकि हम
एक सभ्य
समाज का
निर्माण कर
सकें!
हिंदुस्तान में लड़कियों
की हर
हरकत को
उनके स्वयं
के लिए
दैहिक जोखिम
व पुरुषों
के लिए
उकसावे के
रूप में
देखा जाता
है। वह
हंस क्यों
रही है,
चहक क्यों
रही है,
गा क्यों
रही है,
सज क्यों
रही है?
हर बात
में पाबंदी,
हर बात
में आज्ञा
लेना जरूरी।
गोया लड़कियों
का जीना
और सांस
लेना भी
उकसावा हो।
औरतों द्वारा
उकसाने वाली
बात इसलिए
भी गलत
है कि
बलात्कार के
पीछे हमेशा
सिर्फ कामेच्छा
ही नहीं
होती, इसे
एक हिंसक
हथियार की
तरह भी
इस्तेमाल किया
जाता है।
बदला निकालने,
औकात बताने
के लिए
तथाकथित जेंडर
सुपीरियोरिटी के घमंड में भी
ऐसा किया
जाता है।
युद्ध और
दंगों में
इसीलिए बलात्कार
होते हैं।
जहां अराजकता
हो, कानून
का डर
न हो,
वहां भी
भीतर का
हैवान जागृत
हो जाता
है, वह
जानता है
कि उसका
कोई कुछ
बिगाड़ नहीं
सकता।
पिछले वर्ष कलकत्ता
के एक
परिवार के
साथ एक
बुजुर्ग महिला
आई थी
जो दाई
का काम
करके, तेल
मालिश आदि
करके अपनी
आजीविका कमाती
है। उसने
बताया कि
उसे मछली-भात बहुत
पसंद है
पर युवावस्था
में ही
उसके पति
की मृत्यु
हो गई
थी, तबसे
ही उसके
परिवार ने
उसका मछली
खाना बंद
करवा दिया,
लोग कहते
हैं मछली
खाएगी तो
मस्त हो
जाएगी! बंगाल
में यह
सामान्य बात
रही है।
वहां विधवा
की रसोई
अलग होती
है। एक
और समुदाय
है जिसमें
बच्ची का
छ: साल
की होते
ही खतना
यानी योनी-क्षत कर
दिया जाता
है! उस
समुदाय की
भारतीय जनसंख्या
में भी
यह इतना
आम है
जिसकी आप-हम कल्पना
भी नहीं
कर सकते।
बात उठाई
भी नहीं
जा सकती
क्योंकि पपोलीकरण
की राजनीति
ने इन्हें
अति असहिष्णु
बना दिया
है। इनकी
कुप्रथाएं आपको आंखों देखी मक्खी
की तरह
निगलना होती
है। समाज
में व्याभिचार
की नदी
को बहने
से रोकने
के नाम
पर स्त्री
की दैहिक
आकांक्षाओं की बलि लेना हमारे
दक्षिण एशियाई
समाजों में
आम है।
हालांकि इससे
न व्याभिचार
रुकता है,
न यौन
शोषण, न
बलात्कार। जिन समाजों में वैधव्य
आते ही
स्त्री के
केश मुंडवा
दिए जाते
थे। ताजीवन
श्र्ाृंगार करना मना हो जाता
था, उनका
भी यौन
शोषण होता
था। यानी
यह कहना
गलत होगा
कि रसहीन,
श्र्ाृंगार रहित जीवन उन्हें बचा
लेता था।
स्त्रियों के पहनावे को बलात्कार
से जोड़ना
इसलिए भी
गलत है।
यदि वे
लोग कहना
चाहते हैं
कि बलात्कारी
आदमी तो
बड़ा भला
जीव होता
है, गलत
कपड़े पहन
कर औरतें
ही उन्हें
उकसाती हैं,
तो फिर
उन्हें इस
बात का
भी जवाब
देना चाहिए
कि चार
साल, सात
साल की
बच्चियों के
साथ बलात्कार
कैसे हो
जाता है।
वह भी
सामूहिक बलात्कार।
एक आदमी
हो तो
खट् से
यह सिफारिश
दे दी
जाती है
कि इस
हैवान का
ही भेजा
खराब है।
मगर इतनी
नन्हीं बच्ची
के साथ
सामूहिक बलात्कार
होना और
एक का
भी विवेक
और प्रज्ञा
न जागना
यह बताता
है कि
सड़न व्यक्तिगत
नहीं सामाजिक
है। और
हम जिसे
दुर्गंध सता
रही है
उसी की
नाक का
दोष देख
रहे हैं,
दुर्गंध के
स्रोत को
पहचानने और
साफ करने
के बजाए।
एक महिला ने
यह बयान
दे दिया
कि वे
छ: लोग
थे तो
लड़की को
प्रतिरोध नहीं
समर्पण कर
देना था!
यही तो
दोष है
भारतीय समाज
में। लड़कियों
को यह
नहीं सिखाया
जाता कि
मुकाबला करो,
मजा चखाओ
चाहे जान
क्यों न
चली जाए।
उन्हें हमेशा
यह सीख
दी जाती
है कि
दब्बू बनी
रहो, घूंघट
की आड़
में छुप
जाओ, अंधेरे
से डर
जाओ। आत्मरक्षा
के पैंतरे
सिखाने और
गलत का
प्रतिरोध करने
की ट्रेनिंग
दी जाने
के बजाए
उन्हें डर-डर कर
जीना सिखाया
जाता है।
इसका कोई
फायदा नहीं
होता डरावनी
चीज तो
फिर भी
घटित हो
ही जाती
है। पर
सबसे बड़ा
संकट तो
विश्वास का
संकट है।
प्रशासन और
न्याय व्यवस्था
पर से
देश का
विश्वास उठ
गया है।
रपट लिखाने
कहां जाएं
जब रक्षक
ही भक्षक
हों। दिमाग
में कूट-कूटकर भरा
स्त्री-पुरुष
भेद, व्यवस्था
में पोल
ही पोल।
वहां देर
भी, अंधेर
भी। यही
वजह है
कि देश
के युवाओं
का गुस्सा
यूं फूट
पड़ा। यह
आक्रोश तात्कालिक
न हो।
क्रांति की
कोख से
सुधार जन्म
लें, तभी
इसका कुछ
मतलब होगा।
निर्मला भुराड़िया

Thoughts of each and every woman of India !
जवाब देंहटाएं