बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

जब 'फेल' का मतलब हो 'पास'

तानाशाही, भ्रष्टाचार और दमन तले जी रहे कुछ अरब मुल्कों में वर्षों से भीतर सुलग रही आँच ने आग पक़ड़ ली है और अब वहाँ तख्ता पलट क्रांतियाँ हो रही हैं। इस आँच को फैलाने में फेसबुक, ट्विटर, गूगल, ईमेल जैसे सूचना क्रांति मंचों की बहुत ब़ड़ी भूमिका रही है। स्वतंत्र मीडिया की अनुपस्थिति में आजाद दुनिया की हवा लगना और विचार शक्ति के माध्यम से एक-दूसरे से संपर्क करना वहाँ मुश्किल ही था। इंटरनेट ने उन्हें यह मौका दिया। हम भारतीय भाग्यशाली हैं कि हमें जन्म के साथ ही प्रजातंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली। हमारे देश में आजाद मीडिया है, जिसका लुत्फ हम उठाते रहे हैं। बावजूद इसके हमारा मीडिया बाजार की लक्ष्मण रेखाओं के भीतर रहकर ही उ़ड़ता है। अतः हम भारतीयों के लिए भी इंटरनेट जैसे परम आजाद माध्यम अंततः आकाश की उ़ड़ान साबित हुए हैं। फेसबुक, ट्विटर, गूगल की सक्रियता के अलावा कई भारतीयों ने अपने ब्लॉग बना लिए हैं, जो अंग्रेजी, हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में धुआँधार चल रहे हैं। यह अद्भुत मीडियम है, यहाँ आप किसी भी फॉर्मूले से बँधे नहीं हैं, न ही शब्द संख्या या स्थान की सीमा से। आप जिस भी ढंग से, जिस भी फॉर्मेट में, जिस भी विधा या अविधा में चाहें, अपनी बात कह सकते हैं और वह बात पलक झपकते ही अनगिनत लोगों तक पहुँच जाती है। अतः भारत में भी सामाजिक जागरण में इंटरनेट जैसे माध्यम की बहुत महती भूमिका हो सकती है और वह होगी भी।

भारतीय लोगों को सफलता और असफलता के लिए "पास" और "फेल" जैसे शब्द जल्दी समझ आते हैं। पास होने की तरफ हम सारा जोर लगा देते हैं, फेल होने की तरफ हम देखते भी नहीं, उससे सबक लेना दूर की बात है। दूसरे यह भी तो हो सकता है, कौन पास है? कौन फेल? इसको आंकने का हमारा पैमाना ही गलत हो। फेल होने से भी बहुत-सी सफलताएँ जुड़ी हैं। "फेल" भी एक आईना है। बस, यही बातें मनोरंजक तरीके से बताने के लिए failblog.in जैसे ब्लॉग अस्तित्व में आ गए हैं। ये ब्लॉग्स कभी किसी विसंगति पर नजर डालते हैं, जैसे एक दीवार पर पोस्टर लगा है "साफ सुथरापन ईश्वर तुल्य है" मगर यह पोस्टर बहुत ही गंदी दीवार पर चिपका है। पोस्टर खुद मटमैला और कीच़ड़ के दाग-धब्बों से सना है। किसी रेस्टोरेंट के मेनु बोर्ड पर "सेंव-पूड़ी" को "शेव-पूरी" लिख दिया गया है तो उसकी तस्वीर भी यहाँ उपलब्ध है। कुछ विचित्र फेल भी यहाँ हैं जैसे एक श्वान एक पोस्टर में छपी खाद्य सामग्री देखकर लालायित हो गया है, मगर खा तो सकता नहीं। इस तस्वीर के साथ भी फेल लिखा है, जो श्वान की असफलता के साथ ही मृगतृष्णा की ओर भी इशारा करता है। इस तरह के ब्लॉग्स में कोई भी अपनी एंट्री भेज सकता है। ये अभिव्यक्तियाँ पास और फेल की नए ढंग से विवेचना करने को प्रेरित करती हैं। जैसे कि कुछ चीजों को फल समझने वाला दरअसल स्वयं फेल है। मसलन अपने कार्य को अच्छे से अंजाम देने वाले को हम यथोचित सम्मान नहीं देते। कोई अच्छा शिक्षक है, अच्छा पोस्टमेन है, अच्छा ट्रेफिक पुलिस है तो क्या हम इस बात को सम्मान देते हैं कि वह अपना काम अच्छे से कर रहा है? दरअसल यहाँ फेल हम हैं, क्योंकि हम दूसरों के पास और फेल को उनके कार्य से नहीं उनके पैसे से तौलते हैं, भले वह कहीं से भी आया हो। फिर हम भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध कैसे लड़ेंगे! क्योंकि हम तो खुद पैसे की लकदक में लदे भ्रष्टाचारी को मान्यता देते हैं। दौलतमंद को पास मानते हैं, सामान्य काम करने वाले सामान्य लोगों को फेल। किसी भी सामाजिक क्रांति के लिए जरूरी है कि हम इस फेल्यूअर को देखें।

- निर्मला भुराड़िया

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत ही निर्मल तरीके से, फेल पर कलमवार करके, फेल को पास कर दिया है। प्रत्‍येक क्षेत्र में ऐसे नेक प्रयास किए जाने आवश्‍यक हैं। विसंगतियों को पहचानना और उन्‍हें सामने लाकर उनकी चिकित्‍सा करना वक्‍त की जरूरत है।

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  2. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाइयाँ ... पर एक शिकायत है आपसे faliblog.in जैसे इतने उम्दा ब्लॉग की चर्चा करते हुए आपने अगर वहाँ उसका लिंक भी लगा दिया होता तो लोगो की निगाह में जल्द आता ... अभी भी देर नहीं हुयी पोस्ट को एडिट कर वहाँ लिंक लगा दीजिये ! बस हो गया काम ! वैसे आपकी इस पोस्ट को हम पास करते है !

    और हाँ अविनाश जी का बहुत बहुत आभार आपकी पोस्ट का लिंक उनकी पोस्ट से ही मिला ... और आपको धन्यवाद failblog.in के लिए !
    जय हिंद !

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  3. दर असल जब तक नफा नुक्सान से हट कर हमारी सोच सही और ग़लत की समझ की ओर नहीं जाएगी तब तक फेल पास होता रहेगा और पास ..फेल/ वाकई ये एक विचारनीय बात है.इसे उठाने के लिए शुक्रिया.ब्लॉगिंग की इस दुनिया में मैंने कल ही कदम रखा है ..आप मेरे शुरूआती प्रयास को देखने के लिए http://shefalinama.blogspot.com में आमंत्रित हैं.

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  4. गंभीर चिंतन का मौक़ा देता है यह आलेख . आभार .

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  5. किसी भी सामाजिक क्रांति के लिए जरूरी है कि हम इस फेल्यूअर को देखें।
    -सहमत!

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  7. मैंने हिंदी के साथ कई बार व्याभिचार होते देखा है, अक्सर आशीर्वाद को आर्शीवाद लिखा हुआ देखा है, यहाँ दिल्ली में तो अंग्रेजी हावी है, उसमें भी एक जगह तो मार्ग का नामकरण इतना आपत्तिजनक है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. इस मार्ग के एक कोने पर लगी पट्टिका पर तीर के निशान के साथ लिखा है- Kasturba Gandhi Xing.

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