इश्क, ममता और धोखा
जब आप सोचते हैं 'मां' तो आपके जेहन में सिर्फ अपनी मां की छवि ही नहीं उभरती बल्कि उसका निस्वार्थ प्रेम, अगाध ममता, नन्हे-नन्हे मगर बेशकीमती त्याग जैसी बातें भी मूर्त रूप में आ जाती हैं, आकार लेने लगती हैं। इंसान कितना भी बड़ा हो जाए, चोट लगने पर मुंह से सबसे पहले 'उई मां' ही निकलता है। मां का अर्थ ही होता है सुरक्षा। मां का प्यार व्यक्ति को गहरी भावनात्मक सुरक्षा देता है। मां यानी विश्वास। वह हर कीमत पर अपनी औलाद के विश्वास की रक्षा करती है। यदि आपने उससे कुछ गोपनीय बांटा है, तो वह उसे कभी किसी से नहीं कहेगी, भले ही वह गरल हो, तो वह उसे गले में रख लेगी, नीलकंठ हो जाएगी मगर उगलेगी कभी नहीं। मां से बड़ा विश्वासपात्र कोई नहीं होता। नन्हा बच्चा भी अपनी दैनंदिन की हर चखर-चखर मां से ही करता है। मगर कभी मां ही मन को चोट पहुंचाए तो?
हाल ही में एक फिल्म देखी 'हैदर।' यह फिल्म शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक 'हेमलेट' पर आधारित है। नाटक में हेमलेट डेनमार्क का राजकुमार था। यहां हैदर आतंकवाद से ग्रसित कश्मीर का एक बेटा। लेकिन अलग पृष्ठभूमि के बावजूद फिल्म की कहानी वही है, जो हेमलेट की थी। प्रिंस हेमलेट अपने पिता (किंग हेमलेट) से अथाह प्रेम करता है। मगर किंग की हत्या हो जाती है। इसके तुरंत बाद किंग की पत्नी यानी प्रिंस हेमलेट की मां किंग के भाई क्लॉडियस से शादी कर लेती है जो कि नया राजा बन गया है। पिता का भूत प्रिंस हेमलेट को बताता है कि उसकी यानी किंग की हत्या उसके भाई क्लॉडियस ने ही की थी। अपने प्रिय पिता के हत्यारे के साथ मां की मुहब्बत प्रिंस हेमलेट के दिमाग को इतना उलझा देती है कि वह दिमागी संतुलन खो बैठता है। हैदर के साथ भी यही होता है। पिता के गायब होने के तुरंत बाद जब वह घर लौटता है तो अपनी मां को चाचा के साथ हंसते और गाते, बेहद प्रसन्न पाता है। उसे षड्यंत्र की बू आती है और शक होता है कि उसके पिता के गायब होने में चाचा के साथ मां भी शामिल है। वह इस दिल तोड़ देने वाले और मनावैज्ञानिक तौर पर निचोड़ देने वाले एहसास से लड़ ही रहा होता है कि रूहदार नामक व्यक्ति (यहां भूत के बजाय पिता का सहबंदी) बताता है कि हैदर का पिता मार दिया गया है और उसका मुखबिर और प्रकारांतर से उसका कातिल उसका चाचा ही है। हैदर दुख से पगला जाता है। एक तो प्रिय पिता के कत्ल का दुख, लेकिन उससे भी बड़ा दुख यह प्रतीति कि मां भी इसमें शामिल रही।
चार सौ साल पहले लिखा गया नाटक आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि इंसानी मनोविज्ञान वेसा ही दुरूह और जटिल है, जैसा पहले था। कभी-कभी इंसान एक ही व्यक्ति के प्रति प्रेम और नफरत के हिंडोले में झूलता है। हेमलेट के साथ भी यही कशमकश है। जो उसकी मां है, वही पिता के कातिल की प्रेयसी भी। अब इंसान का दिमाग क्या करे? प्यार या नफरत? दोनों एक साथ हो नहीं सकते। अत: संतुलन बिगड़ जाता है। हैदर की त्रासदी तो इससे भी आगे है। मां का अर्थ होता है विश्वास। तो जब मां ही धोखा दे दे तो क्या हो? आदमी डिसफंक्शनल हो ही जाएगा। वहीं हैदर की मां की त्रासदी यह है कि उसने पति के कातिल से मुहब्बत जरूर की है मगर पति का कत्ल नहीं किया है। वह अनजाने में मोहरा बनी है। वह प्रेमी से इश्क जरूर करती है, मगर बेटे को भी बहुत चाहती है, खुद से और प्रेमी से भी ज्यादा, मगर शक से बौराए बेटे को यकीन दिलाने में नाकामयाब रहती है।
रिश्तों की ये गुत्थियां पहले भी थीं, अब भी हैं। धोखे तो बहुत से होते हैं दुनिया में, मगर जब कोई अपना ही विश्वास की कसौटी पर खोटा निकल जाए तो वही भावनात्मक त्रासदी होती है जो हैदर उर्फ हेमलेट के साथ हुई थी।
-निर्मला भुराड़िया
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