बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

शुभ संकेत

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शुभ संकेत

आज बॉक्सर मेरी कॉम को कौन नहीं जानता। अब तो उनकी जीवनी पर फिल्म भी बन कर रिलीज हो चुकी है। इससे हम बॉक्सिंग के क्षेत्र में उनकी उपलब्ध्ाियों के बारे में ही नहीं उनके जीवन के अन्य पहलुओं के बारे में भी जान रहे हैं। बॉक्सिंग को लेकर उनका नैसर्गिक रुझान, उनकी प्रतिभा, उनकी लगन, बल्कि यूं कहें कि उनका जुनून सब कुछ बेहद प्रेरणादायी है। साथ ही उनका संघर्ष, हवा के खिलाफ टिके रह कर जो ठान लिया वह कर गुजरने का माद्दा भी जानने लायक है। इससे संघर्ष कर रहे अन्य लोगों को भी बल मिलता है। मगर मेरी कॉम के संघर्ष, जुनून और सफलता की इस कहानी में सर्वाध्ािक उल्लेखनीय और प्रेरणादायक कोई बात है तो वह है उनके पति द्वारा अतुलनीय सहयोग की गाथा। हालांकि फिल्म माध्यम में तथ्यों को थोड़ा उभार कर बताना होता है, मगर आखिर तो यह एक जीवनी ही है और सत्य के आध्ाार पर ही बुनी गई है, अत: ये सच है कि मेरी कॉम की सफलता में उनके पति का बहुत बड़ा हाथ है। यूं विवाह के पूर्व ही मेरी की मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया था पर साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि ओलिम्पिक के मैडल सहित, मेरी कॉम की बहुत सी बड़ी सफलताएं शादी और बच्चे होने के बाद की हैं। एक खिलाड़ी महिला के लिए यह कैसी कठिन चुनौती है, यह समझा जा सकता है। मेरी के पति स्वयं एक फुटबॉल खिलाड़ी हैं, मगर मेरी की तूफानी प्रतिभा और बॉक्सिंग के प्रति जबरदस्त पैशन को समझते हुए उन्होंने अपना कैरियर छोड़कर घर और बच्चों को सम्हाला और मेरी को अपने उच्चतम मुकाम पर पहुंचने देने के लिए राह बनाई। वह भी साध्ाारण लालन पालन नहीं। इस बीच दो में एक बच्चा गंभीर रूप से बीमार भी हुआ। यह एक दुर्लभ उदाहरण है क्योंकि मेरी के पति ने सिर्फ पत्नी का सहयोग ही नहीं किया पत्नी के लिए त्याग भी किया। भारतीय पुरुषों में बचपन से ही पालित-पोषित अहं को भी उन्होंने बीच में नहीं आने दिया और यह समझने की कोशिश की कि वे दोनों ही खिलाड़ी हैं तो क्या उनकी पत्नी की प्रतिभा और जुनून दोनों ही उनसे ज्यादा हैं अत: घर के लिए खेल उन्हें छोड़ना चाहिए पत्नी को नहीं। जिस देश में जेंडर के हिसाब से यह तय होता हो कि त्याग कौन करेगा वहां मेरी कॉम के पति की मिसाल बहुत बड़ी है।
मेरी कॉम पर बनी बायोपिक देखकर यकायक कई किस्से याद जाते हैं। मीना कुमारी और कमल अमरोही दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। मगर मीना कुमारी चूंकि अभिनेत्री थी अत: अध्ािक प्रकाश में थीं। यदि कमाल अमरोही का परिचय कोई यह कह कर करवा दे कि ये मीना कुमारी के पति हैं तो उन्हें बुरा लग जाता था। एक बार मीना स्टेज पर गईं और अपना पर्स सीट पर भूल गईं तो अमरोहीजी ने दोस्तों के याद दिलाने के बावजूद उसे उठाया नहीं बल्कि यह कहा कि क्या मैं बीवी का पर्स उठाऊंगा? सुनते हैं जोहरा सहगल के पति ने इसीलिए आत्महत्या कर ली थी कि जोहरा उनसे काफी आगे निकल गई थीं। आखिर ऐसे लोग क्यों होते हैं जो पत्नी की सफलता पर गर्वित होने के बजाए चोटिल हो जाते हैं, उनके अहं को ठेस पहुंच जाती है?
फिल्म 'खेल-खेल" के एक गाने की पंक्ति है, 'ये भी जोड़ी है कैसी निराली, पीछे लाला चले आगे लाली।" गाने में पत्नी आगे और पति पीछे को अजीब इसलिए माना गया है कि हमारे समाज में यह अलिखित नियम रहा है कि पति आगे और पत्नी पीछे चलेगी। पति उम्र में बड़ा, पत्नी छोटी होगी। पति पत्नी को चाहे तू कह कर पुकारे वह तो उसे आप ही कहेगी। देखा जाए तो यह भी एक सामाजिक अपेक्षा ही है कि पुरुष का स्त्री से अध्ािक सफल होना जरूरी है। इस थोपी गई अपेक्षा का पुरुषों पर बहुत दबाव रहता है। यही अपेक्षा पुरुष मन पर यह मनौवैज्ञानिक प्रभाव भी छोड़ती है कि पत्नी की सफलता पर वह हीनता महसूस करने लगता है। यह पुरुष के दिमाग की उपज नहीं समाज के रवैए का बोया बीज है। पत्नी की सफलता से वह इसलिए परेशान होता है कि 'लोग क्या कहेंगे?"
मगर ध्ाीरे-ध्ाीरे ही सही हमारे समाज में और पुरुषों की मानसिकता में भी इस संदर्भ में तेजी से परिवर्तन रहा है। एक दूसरे को तू और आप में किया जाने वाला संबोध्ान दोनों द्वारा ही एक दूसरे को तुम कहे जाने से सम पर गया है। ऐसे बहुत से पुरुष हैं जो अपनी पत्नी की सफलता पर गर्वित होने लगे हैं और आगे बढ़ कर उसका परिचय कराते हैं। पत्नी को रोकने के बजाए उसको आगे बढ़ने में सहयोग करने वाले भी अब दिखने लगे हैं क्योंकि हमारा सामाजिक वातावरण भी बदला है। वैसे व्यक्तिगत तौर पर भी कुछ लोग संकीर्ण और अहंवादी होते हैं और कुछ लोग उदार। आत्मविश्वास से भरपूर ये दूसरे वाले लोग पत्नी की प्रगति से हीनता बोध्ा नहीं, गर्व महसूस करते हैं। मेरी कॉम के पति ने सिर्फ सहयोग ही नहीं, त्याग भी किया। कम ही सही, ऐसी मिसालें भी अब भारतीय समाज में दिखने लगी हैं। यह एक शुभ संकेत है।

निर्मला भुराड़िया


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