हर प्रकार के
समाचार माध्यमों
ने अपने
जमाने के
सुपरस्टार राजेश खन्नाा को श्रद्धांजलि
दी है,
अत: पिछले
हफ्ते में
कई बार
हम ये
किस्से सुन
चुके हैं
कि कैसे
लड़कियाँ उनके
फोटो से
ब्याह रचाती
थीं, उन्हें
खून से
खत लिखती
थीं वगैरह।
सत्तर का
दशक वह
समय था
जब भारत
में लड़कियाँ
उस सामाजिक
स्थिति में
बस पहुँची
ही थीं
कि वे
अपने रुमानी
आईडियाज को
अभिव्यक्त कर सकें। ऐसे में
पर्दे पर
आँखें मिचकाता,
गर्दन डुलाता
एक सितारा
उनके सपनों
का ही
नहीं, सपनीली
अभिव्यक्तियों का भी निशाना बन
गय। उस
दौर में
लड़कियाँ ही
नहीं लड़के
भी राजेश
खन्नाा के
दीवाने थे।
काका का
पहना गुरू
कुर्त्ता और
पैंट हर
युवक का
लिबास बन
गया था।
हेयर कटिंग
सैलून में
उनकी हेयरस्टाइल
कॉपी करने
का आग्रह
किया जाता,
उनकी चाल-ढाल, हाव-भाव की
नकल की
जाती। उनकी
फिल्में सुपरहिट,
उन पर
फिल्माए गाने
सुपरहिट। ऐसी
गजब की
प्रसिद्धि कि आप भगवान ही
हो जाएँ,
बमुश्किल ही
किसी को
मिलती है।
अपने ऊँचे
समय में
इस सुपर
सितारा नायक
ने जिस
आसमान को
छुआ उसे
तो महानायक
अमिताभ भी
न छू
पाए। हाँ
अमिताभ उनसे
ऊपर इस
मायने में
जरूर रहे
कि वे
हमेशा बने
रहे, मगर
राजेश का
सितारा अपेक्षाकृत
कम समय
के लिए
चमका और
उनके जीते
जी ही
अस्त भी
हो गया।
उन्होंने स्वर्ग
और पाताल
को एक
ही जीवन
में छुआ।
सन 1993, इंदौर का
श्रीमाया होटल।
मैं श्री
राजेश खन्नाा
के सामने
बैठी हूँ।
उनसे बातचीत
कर रही
हूँ। लंबा
इंटरव्यू देने
के लिए
उन्होंने गला
खंखार लिया
है। मैं
गौर से
देखती हूँ।
उनका सुपर-सितारा अस्तित्व
समाप्त हुए
दशक से
ऊपर बीत
चुका है।
पलकें झपकाने
वाला और
अदा से
गर्दन मोड़ने
वाल मैनरिज्म
वहाँ नहीं
है। मैं
मन ही
मन अपने
तैयार किए
हुए प्रश्नों
से अलग
एक-दो
प्रश्न और
सोच लेती
हूँ। जैसे
कि क्या
लोकप्रियता के साथ अहं भी
आ जाता
है? और
यह भी
कि जब
इंसान लोकप्रियता
की लहर
पर सवार
होता है
तो उसे
कैसा लगता
है? इस
बाद वाले
प्रश्न का
जवाब उन्होंने
यह दिया
था कि
जब इंसान
लोकप्रियता के सर्वोच्च बिंदु पर
होता है
तो उसे
लगता है
वह ईश्वर
के करीब
पहुँच गया
है।
न भूतो न
भविष्यति वाली
अभूतपूर्व सफलता मिल जाए तो
उसे सहना
मुश्किल होता
है। इतना
सुख बर्दाश्त
करना भी
शायद इंसान
के ग्रहण-सामर्थ्य से
बाहर है।
राजेश खन्नाा
जब सफलता
की चोटी
पर थे,
चारों तरफ
से सुख,
समृद्धि, सफलता,
बरस रही
थी तो
वे इतने
हतप्रभ हो
गए थे
कि सागर
में उतर
पड़े थे
आत्महत्या करने! इतनी कामयाबी कैसे
सम्हालें, इसके आगे क्या जैसे
सवालों ने
उनके दिमाग
में तूफान
ला दिया
था। यही
राजेश जब
एक के
बाद एक
फ्लॉप देने
लगे, तो
आसमान से
गिरे और
टूट गए।
कुंठा में
उन्होंने अपने
आप को
शराब में
डुबो लिया।
कोई आश्चर्य
नहीं कि
उन्हें खुद
पर फिल्माए
गाने में
से कौनसा
सबसे ज्यादा
पसंद है
पूछे जाने
पर उन्होंने
कहा उन्हें
'जिंदगी के
सफर में
गुजर जाते
हैं जो
मकाम, वो
फिर नहीं
आते" बेहद पसंद है। क्या
लोकप्रियता के साथ अहं भी
आ जाता
है के
जवाब में
उन्होंने कहा
था, 'औरों
का पता
नहीं, पर
मुझे यह
महसूस नहीं
हुआ क्योंकि
मैं तो
यह मानता
हूँ हम
सब कठपुतली
हैं, जिसकी
डोर ऊपर
वाले के
हाथ में
है।"
खैर राजेश खन्नाा
ने स्वयं
में अहं
आने के
बारे में
जो जवाब
दिया वह
कितना सही
था और
कितना गलत
था ये
तो वह
खुद ही
जानते होंगे।
मगर फिल्म
इंडस्ट्री से जुड़े पत्रकार मित्र
यही बताते
हैं कि
पर्दे की
छबि को
लेकर लड़कियों
में इतने
लोकप्रिय काका
अपने जीवन
में आई
स्त्रियों से तादात्म्य नहीं बैठा
पाए। उनकी
प्रथम प्रेमिका
अंजू महेंद्रू
के जमाने
में वे
सफलता के
शिखर पर
थे, हमेशा
चमचों से
घिरे रहते
थे। घर
हो या
फिल्म का
सेट, ये
चमचे उन्हें
नहीं छोड़ते
थे। सफलता
के अंधेपन
ने प्रेमिका
को अलग
किया, तो
असफलता ने
पत्नी को।
डिम्पल के
समय राजेश
का असफलता
का दौर
आ चुका
था और
वे खिन्ना,
कुंठित रहते
थे। यह
सब डिम्पल
को भुगतना
पड़ा और
वे अलग
हो गईं।
यानी सफलता
और असफलता
दोनों को
ही सम्हालना
उनके लिए
कठिन रहा।
राजेश खन्नाा
के जीवन
की स्थितियाँ
तो एक्स्ट्रीम
थीं, मगर
थोड़े-बहुत
उतार-चढ़ाव
और सफलता-असफलता के
दौर तो
हरएक के
जीवन में
आते हैं।
काका के
जीवन से
यही सबक
लिया जा
सकता है
कि सफलता
की राह
देखे बगैर
और असफलता
की परवाह
किए बगैर,
हर पल
खुशी से
जी लेना
अच्छा है।
जिंदगी एक
सफर है
सुहाना यहाँ
कल क्या
हो किसने
जाना?
निर्मला भुराड़िया