मंगलवार, 16 नवंबर 2010

सीधा चुनो या उल्टा तुम्हारी मर्जी!

बच्चे छोटो और नन्हे जरूर होते हैं, मगर आधे-अधूरे नहीं होते। छोटा बच्चा भी एक सम्पूर्ण इंसान होता है। अपनी आवश्यकताओं के लिए जरूर वह बड़ों पर ‍िनर्भर होता है, अनुभवहीनता के चलते वह दुनियादारी की समझ भी बड़ों को देखकर ही विकसित करता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि एक बच्चा चाबी वाला गुड्‍डा या गुड़िया होता है। हमारे यहाँ बच्चों को अमूमन ऐसा ही समझा जाता है। वह भी यह कहकर कि यह सब उसकी भलाई के लिए ही तो है। लिहाजा बच्चों को सुधार-सुधारकर दुनियादार बनाने का क्रम हर वक्त जारी रहता है, यह बात समझे बगैर कि जिन बातों को हम अनुशासन और मार्गदर्शन का नाम दे रहे हैं, मनोविज्ञान के स्तर पर कहीं वह कठोरता, दबाव और कैद तो नहीं? माँ-बाप तो छोड़िए पड़ोसी तक बच्चों को तथाकथित रूप से सुधारने की फिक्र में रहते हैं। ऐसा ही एक किस्सा है। एक बच्ची शाम को पड़ोसन के घर पढ़ने जाती थी। दो-चार दिन में ही पड़ोसन आई और बच्ची की माँ से कहने लगी 'अरे आपने कभी ध्यान नहीं ‍िदया आपकी बच्ची तो उल्टे हाथ से लिखती है। मार-मार के शुरू में ही छुड़ा दो, नहीं तो गलत आदत पड़ जाएगी।'

यह हमने कैसे तय कर लिया कि सीधे हाथ से ही लिखना सही है? यह थोड़ा देखा-देखी वाला मामला है। दुनिया में अधिक प्रतिशत लोग सीधे हाथ से काम करते हैं इसलिए यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि सीधे हाथ से काम करना ही सही है और लिखने आदि के लिए उल्टा हाथ वापरना गलत। व्यक्ति राइट हैंडर होगा या लैफ्ट हैंडर यह प्रकृति तय करती है।

मस्तिष्क का बायाँ गोलार्द्ध शरीर के सीधे तरफ के हिस्से को संचालित करता है अत: जिनका डॉमिनेंट हाथ सीधा होता है वे सीधे हाथ से सब काम करते हैं। यहाँ तक कि उनकी दाँईं आँख, दायाँ पाँव, दायाँ कान भी ज्याद तेज होता है। जिन लोगों के मस्तिष्क का दायाँ गोलार्द्ध अधिक सक्रिय होता है उनके शरीर के बाएँ हिस्से अधिक संचालित होते हैं। कुछ लोग क्रॉस वायर्ड भी होते हैं। उनके दोनों गोलार्द्ध सक्रिय होते हैं। ऐसे लोग सीधे हाथ से लिखते हो तो फोन उल्टे कान से सुनते हैं या खाना दाढ़ के उल्टी तरफ से चबाते हैं। इन लोगों को दाएँ-बाएँ में बहुत गफलत होती है। इसका मतलब यह नहीं कि यह लोग नाकारा होते हैं। बल्कि यह कि इन लोगों में मस्तिष्क की कई पगडंडियाँ और रास्ते काम कर रहे होते हैं, जो शायद दूसरों में सोए पड़े हों। अत: इनमें कई गजब के प्रतिभाशाली भी निकलते हैं।

कहने का तात्पर्य यही कि हमारी सामाजिकता नहीं हमारे दिमाग की व्यक्तिगत कार्यप्रणाली यह तय करती है कि कोई व्यक्ति राइट लेटरेलिटी वाला होगा, लेफ्ट लेटरेलिटी वाला या क्रॉस वायर्ड। ऐसे में अपने बनाए कायदे थोपने और बच्चे को तरीका बदलने पर मजबूर करने पर बच्चे का दिमाग उलझन में फँस सकता है या अच्छा-भला बच्चा दब्बू बन सकता है। यही नहीं हमारी अतार्किक कठोरता दुनिया को किसी लियोनार्डों दा विंची या आइंस्टिन से वंचित कर सकती है।

- निर्मला भुराड़िया

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