वैज्ञानिकों का कहना है िक खाना सिर्फ पेट से जुड़ी प्रक्रिया नहीं है, मस्तिष्क से जुड़ी प्रक्रिया भी है। अत: पेट भरने पर भूख की तृप्ति का सिग्नल मस्तिष्क से प्राप्त होता है, लेकिन जब आप टीवी देखते हुए, कोई किताब पढ़ते हुए, फोन पर बात करते हुए खाते हैं तो मस्तिष्क भोजन के अलावा भी किसी और कर्म में उलझ जाता है और सिग्नल देने में देर कर देता है यानी आप ज्यादा खा जाते हैं। इसका उपाय बताया गया है - माइंडफुल ईटिंग अथवा सचेत भोजन क्रिया। सचेत भोजन का अर्थ यह है कि व्यक्ति एकचित्त से भोजन ग्रहण करें। भोजन की मात्रा के प्रति सचेत रहे। स्वाद और रस के साथ शांतचित्त हो भोजन ग्रहण करें। इससे खाया-पीया ठीक से दर्ज होगा और सामान्य मात्रा में ही पेट भर जाएगा।
दुनियाभर के धार्मिक विश्वासों में भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। ईसाइयों में भोजन पूर्व ग्रेस, इस्लाम में खाने से पहले दुआ व हिन्दू धर्म में भी भोजन पूर्व प्रार्थना का रिवाज रहा है। कई स्कूलों में भी बच्चों को भोजन पूर्व प्रार्थना करवाई जाती है, ताकि आप शांत और एकाग्र होकर भोजन ग्रहण करने को तैयार हो जाएँ और सब लोग एकत्रित होकर नियत स्थान, नियत समय पर भोजन करें। भोजन कक्ष या घर के िनयत भोजन स्थल पर भोजन करने से चलते-फिरते खाने की आदत को भी काफी हद तक टाला जा सकता है। कंपल्सिव इंटिंग करने वाले मन का खालीपन भरने के लिए कुछ न कुछ खाते रहते हैं। भोजन स्थल में बैठकर पेटभर रुचिपूर्वक खाने से हर वक्त मुँह चलाने की आदत पर विराम लग सकता है। यदि आप पढ़ते-पढ़ते भी खा रहे हैं तो फिर मनोरंजन में लिप्त होने का नुस्खा भी कंपल्सिव इंटिंग को नहीं टाल सकता। आप शयनकक्ष में भी खाने का सामान ले जा रहे हैं तो फिर मनोवैज्ञानिक रूप से आपके लिए डाइनिंग रूम और शयनकक्ष अलग नहीं है। तब बार-बार खाने के लिए न आपको रसोईघर में जाने का प्रयत्न करना पड़ेगा, न इस मानसिक संकोच से लड़ने का कि यह
कोई खाना खाने का वक्त है या यह कोई खाने की जगह है क्या? नतीजा यह कि भोजन से जुड़ा रस और अध्यात्म बेखयाली में भकोसने में बदल जाएगा और यह भकोसना मोटापा और अन्य बीमारियों में।
कोई खाना खाने का वक्त है या यह कोई खाने की जगह है क्या? नतीजा यह कि भोजन से जुड़ा रस और अध्यात्म बेखयाली में भकोसने में बदल जाएगा और यह भकोसना मोटापा और अन्य बीमारियों में।
डाइनिंग रूम में सचेत भोजन के भी अपने नियम है। जैसे भोजन के वक्त लड़ाई-झगड़े की बात न की जाए, शिकायतों का पुलिंदा भोजन के वक्त के लिए ही न रखा जाए। भोजन सामग्री आने के पूर्व हल्की-फुल्की किस्म की, उत्फुल किस्म की बातें की जाएँ। भोजन ग्रहण करते वक्त कमोबेश मौन रखा जाए। जीवन के प्रति कृतज्ञता के साथ भोजन ग्रहण किया जाए। भोजन ग्रहण की प्रक्रिया में यह सकारात्मकता जोड़ लेने से भोजन बीमारियों का घर नहीं बनेगा अपितु शक्ति और ऊर्जा देगा।
- निर्मला भुराड़िया
हमारे संस्कार तो हमें भोजन से पूर्व और पश्चात ईश्वर को धन्यवाद देना सिखाते हैं. इस तरह भोजन करना अन्नदेवता का अपमान है. उन लोगों का ख्याल अवश्य करें जिन्हें यह नसीब नहीं हो पाता.
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