सोमवार, 29 सितंबर 2014

हृदयहीन व्यापारी बेच रहे, जीती-जागती बच्चियां

www.hamarivani.com रफ़्तार

हाल ही में यशराज फिल्म्स के बैनर से एक फिल्म रिलीज हुई है- मर्दानी! यह कहानी है उन मासूम किशोरियों की जो दुष्टों द्वारा अगवा कर बेच दी जाती है; देह व्यापार में जबरन ध्ाकेल दिए जाने के लिए। इस नर्क में कीड़ों की तरह गिलबिलाने को मजबूर इन बच्चियोंं पर इस तरह जुल्म ढाए जाते हैं कि आपके रोंगटे खड़े हो जाएं। मगर वे शातिर अपराध्ाी जो इन लड़कियों की पीड़ा के जरिए ध्ान कमाते हैं उनमें दिल होता है आत्मा। बेमुरव्वत होकर वे बच्चियों की तस्करी करते हैं। फिल्म में रानी मुखर्जी क्राइम ब्रांच की इंस्पेक्टर हैं। वे पूरे दम-खम और संकल्प के साथ इन अपराध्ाियों के पीछे पड़ जाती हैं और उन बेबस बच्चियों को गुंडों के चंगुल से छुड़ाकर ही दम लेती हैं। इस फिल्म में निश्चित ही एक अच्छा संदेश है, नायिका द्वारा अपराध्ाियों से
लड़ने का प्रेरित करने वाला माद्दा है, साथ ही  आंखें खोल देने वाले दृश्य भी हैं जो बताते हैं कि मासूम बच्चियों के साथ क्या-क्या हो सकता है। इसीलिए कुछ राज्यों में इस फिल्म को मनोरंजन कर मुक्त किया गया है, जिनमें मध्यप्रदेश भी है। दूसरी ओर विडम्बना यह है कि सेंसर बोर्ड ने इसे '" सर्टिफिकेट दे दिया है इससे इसे वे मासूम किशोरियां नहीं देख पाएँगी जिन्हें इस जानकारी, इस एक्सपोजर की जरूरत है कि ये दुनिया कैसी है?
पर्दे के बाहर की दुनिया में भी मानव-तस्करी का जाल फैला हुआ है। फिल्मी कहानी में तो सिर्फ अगवा की हुुई बच्चियों की दास्तान थी, मगर सचमुच की दुनिया में लड़कियां सिर्फ अगवा ही नहीं की जाती बल्कि और भी तरीकों से बहलाई, फुसलाई, जाल में फंसाई, बेची और देह व्यापार में ध्ाकेली जाती हैं। रुपहले पर्दे पर उनके लिए जी-जान से लड़ने वाली एक नायिका भी थी। मगर व्यवहारिक जीवन में अपराध्ा के खिलाफ
लड़ने वाला सिस्टम इतना मजबूत है इतनी इच्छाशक्ति वाला। बल्कि सिस्टम की नाक के नीचे अपराध्ाी पलते हैं। अत: असल दुनिया में जरूरी है व्यवस्था में सुध्ाार के साथ ही जनता, समाज, परिवार और लड़कियों का अध्ािक जागरूक और अध्ािक सतर्क होना। लड़कियां कई तरहों से दुष्टों के जाल में फंस जाती हैं। जैसे गरीब लड़कियों को नौकरी का झांसा देकर अपने गांव-घर से बाहर लाया जाता है और बेच दिया जाता है। शिक्षा और जागरूकता से दूर निधर््ान और भोले मां-बाप इतना भी नहीं समझ पाते कि इंसान के रूप में भेड़िए उनके पास आए हैं। इसी तरह गरीबी के साथ अंध्ाविश्वास भी यही काम करता है। अंध्ाविश्वासों की ही वजह से दक्षिण में देवदासी परंपरा अब तक नहीं मिटी है बल्कि अब तो मंदिर भी बहाना नहीं रहा,
लड़कियां सीध्ो ही रेड लाईट एरिया में भेज दी जाती हैं। जब तक अंध्ाविश्वास नहीं मिटता गांव वाले और खुद लड़कियां और उनके माता-पिता इसके खिलाफ खड़े नहीं हो सकते।
एक और वजह है जिससे लड़कियां आसानी से मानव-तस्करों के जाल में फंस जाती हैं। वह है माता-पिता और बेटियों के बीच विश्वास और मैत्री का रिश्ता होना। ऐसे में लड़की मां-बाप को बताने के बजाए अपने तथाकथित प्रेमी के साथ भाग जाती है। दिखाने के लिए वह उससे शादी भी कर लेता है परंतु जल्द ही वह उसे बेच भी देता है- ऐसी कई केस हिस्ट्रीज सामने आई हैं। मॉडलिंग और फिल्मों के चक्कर में घर से भाग जाने वाली लड़कियों का भी कमोबेश यही हश्र होता है। यदि लड़कियां ग्लैमर बिजनेस में जाने की ख्वाईश भी रखती हों तो उसमें कुछ बुरा नहीं है। मगर इसमें वे थ्रू प्रॉपर चैनल जाएं, अपनी गतिविध्ाियां अपने संरक्षकों और घरवालों की जानकारी में रखें, काम पाने के लिए दैहिक समझौता करें। ग्लैमर की दुनिया के ऊपरी दिखावों और विलासी जिंदगी में अपने को भरमाएं। तब वे शोषण से बच सकती हैं। दरअसल कभी-कभी मां-बाप भी अपनी बेटियों से मित्रता का रिश्ता नहीं रखते। ऐसी लड़कियां दुष्टों के जाल में आसानी से फंसती हैं।
लड़कियों के भीतर ये आश्वासन होना चाहिए कि गलती होने पर भी उनके मां-बाप उन्हें अपना लेंगे या माफ कर देंगे। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि माता-पिता उनके सपनों और इच्छाओं को समझते हैं। तब वे पिछले द्वार से घर के बाहर नहीं जाएंगी। जिन माता-पिता पर संतान को विश्वास होता है कि मां-बाप फालतू की रोक-टोक नहीं करते, वही पालक अपने बच्चों को उनका भला-बुरा समझाने में भी कामयाब होते हैं। रही शादियों की बात वहां भी बच्चों को यह भरोसा होना चाहिए कि जिसे वे चाहेंगे उससे विवाह करने के लिए उनके मां-बाप जात-पात या अपनी नाक के सवाल पर नहीं रोकेंगे। उन्होंने दुनिया देखी है और व्यक्ति में सचमुच कोई खलने वाली बात हुई तभी विवाह के खिलाफ समझाईश देंगे। यदि यह विश्वास है तो कोई भी घर से भाग कर शादी करना पसंद नहीं करेगा। माता-पिता और बच्चों के बीच भय का रिश्ता भी नहीं होना चाहिए। यदि बच्चे मां-बाप और बड़ों से मन की बात कहने से डरते हैं तब तो वे अपनी गलतियों को दबा-दबा कर अपना नुकसान बढ़ाते ही जाएंगे। दुष्टों की नजर ऐसे संवेदनशील (वल्नरेबल) लड़के-लड़कियों पर हमेशा रहती है। इसीलिए इन बच्चों को देह व्यापार और नशे की गिरफ्त में आने में देर नहीं लगती है।
निर्मला भुराड़िया


बुधवार, 6 अगस्त 2014

उपहार में छुपा है प्यार

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एक बार मेरा बेटा स्कूल की ट्रिप पर गया था। वहां से लौटा तो सब के लिए कुछ-कुछ लेकर आया। मैंने पूछा मेरे लिए क्या लाया तो उसने अपनी जेब से एक छोटा सा पत्थर निकाला। तकरीबन चॉकलेट के रंग का यह चौकोर ग्रेनाइट पत्थर फूले हुए काबुली चने के आकार का था। यह तीन तरफ से खुरदुरा और एक तरफ पर चिकना था। उसने मेरे हाथ पर रखा तो मैंने पूछा, 'यह क्या है?" उसने पूरी मासूमियत से कहा, 'मम्मी आपको माइग्रेन होता है ना, आप हमेशा सिरदर्द से परेशान होते रहते हो, इसलिए ये लाया हूं। दुकानदार ने बताया था कि जब सिर दुखे, तो इस पत्थर की चिकनी वाली साइड से उस जगह पर ध्ाीरे से यह पत्थर फिराना है। ऐसा करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है।"
कोई भी अनुमान लगा सकता है कि उपहार में यह पत्थर पाकर मैं मोम की तरह पिघल गई होऊंगी। इस उपहार में बच्चे की चाहत ही नहीं उसकी संवेदनशीलता भी थी। बरबस ही मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह" याद गई, जिसमें, जहां सब बच्चे स्वयं को मिली ईदी से खिलौने खरीदते हैं, एक बालक उस पैसे से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है, क्योंकि वह रोज देखता है कि रोटी बनाते हुए दादी के हाथ जलते हैं। साथ ही वह विज्ञापन भी याद आया जिसमें मां अपने बच्चे को डांटती है कि बाहर बारिश में गीला क्यों हो रहा था, इतने में बच्चा अपने पीछे बांध्ो हाथ में छुपा गुलदस्ता आगे लाता है और उसे मां की ओर बढ़ाते हुए कहता है, 'हैप्पी बर्थडे मम्मी।" मां डांटना भूलकर उसे गले से लगा लेती है।
दरअसल उपहार क्या है? आपके प्यार की, आपकी भावना की अभिव्यक्ति। जब हम भावना से किसी के लिए कुछ लाते हैं तो हम जिसे उपहार दे रहे हैं उसकी पसंद और जरूरत का ख्याल करते हैं। या फिर किसी सृजनात्मक जरिए से जिसे उपहार दे रहे हैं उसके प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं- जैसे हाथ से बनाया ग्रीटिंग, हाथ से बनाई माला या कोई और चीज। उपहार की कीमत उसके दाम से तय नहीं होती देने वाले की भावना से तय होती है। जहां भावना नहीं सिर्फ रस्म हो तो उसकी अदायगी के लिए अक्सर गैर जरूरी, फालतू, कहीं की आई हुई, खुद के लिए बेकार चीज भी उपहार के नाम पर दे दी जाती है। यह शुद्ध लेन-देन होता है, उपहार नहीं।
उपहार देने वाले के साथ-साथ ही उपहार ग्रहण करने वाले की नीयत और भावना भी महत्वपूर्ण होती है। अक्सर उपहार ले लेने के बाद लोग उपहार देने वाले के पीठ-पीछे उपहार की नुक्ता चीनी करते हैं। कीमत के आध्ाार पर उसे छोटा या बड़ा गिफ्ट मानते हैं। सामान्य उपहार देने वाले की भावना से ज्यादा कद्र वे महंगे और दिखावे के लिए दिए गए उपहार की करते हैं।
उपहार में प्यार छुपा है। कोई प्यार से आपके लिए कुछ लाए तो उस पर लगा टैग ढूंढने के बजाए ध्ान्यवाद और कृतज्ञता के साथ उस उपहार को स्वीकार करना चाहिए।
* निर्मला भुराड़िया