एक बार
मेरा बेटा स्कूल की ट्रिप पर गया था। वहां से लौटा तो सब के लिए कुछ-कुछ लेकर आया। मैंने पूछा मेरे लिए क्या लाया तो उसने अपनी जेब से एक छोटा सा पत्थर निकाला। तकरीबन चॉकलेट के रंग का यह चौकोर ग्रेनाइट पत्थर फूले हुए काबुली चने के आकार का था। यह तीन तरफ से खुरदुरा और एक तरफ पर चिकना था। उसने मेरे हाथ पर रखा तो मैंने पूछा, 'यह क्या है?" उसने पूरी मासूमियत से कहा, 'मम्मी आपको माइग्रेन होता है ना, आप हमेशा सिरदर्द से परेशान होते रहते हो, इसलिए ये लाया हूं। दुकानदार ने बताया था कि जब सिर दुखे, तो इस पत्थर की चिकनी वाली साइड से उस जगह पर ध्ाीरे से यह पत्थर फिराना है। ऐसा करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है।"
कोई भी अनुमान लगा सकता है कि उपहार में यह पत्थर पाकर मैं मोम की तरह पिघल गई होऊंगी। इस उपहार में बच्चे की चाहत ही नहीं उसकी संवेदनशीलता भी थी। बरबस ही मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह" याद आ गई, जिसमें, जहां सब बच्चे स्वयं को मिली ईदी से खिलौने खरीदते हैं, एक बालक उस पैसे से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है, क्योंकि वह रोज देखता है कि रोटी बनाते हुए दादी के हाथ जलते हैं। साथ ही वह विज्ञापन भी याद आया जिसमें मां अपने बच्चे को डांटती है कि बाहर बारिश में गीला क्यों हो रहा था, इतने में बच्चा अपने पीछे बांध्ो हाथ में छुपा गुलदस्ता आगे लाता है और उसे मां की ओर बढ़ाते हुए कहता है, 'हैप्पी बर्थडे मम्मी।" मां डांटना भूलकर उसे गले से लगा लेती है।
दरअसल उपहार
क्या है? आपके प्यार की, आपकी भावना की अभिव्यक्ति। जब हम भावना से किसी के लिए कुछ लाते हैं तो हम जिसे उपहार दे रहे हैं उसकी पसंद और जरूरत का ख्याल करते हैं। या फिर किसी सृजनात्मक जरिए से जिसे उपहार दे रहे हैं उसके प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं- जैसे हाथ से बनाया ग्रीटिंग, हाथ से बनाई माला या कोई और चीज। उपहार की कीमत उसके दाम से तय नहीं होती देने वाले की भावना से तय होती है। जहां भावना नहीं सिर्फ रस्म हो तो उसकी अदायगी के लिए अक्सर गैर जरूरी, फालतू, कहीं की आई हुई, खुद के लिए बेकार चीज भी उपहार के नाम पर दे दी जाती है। यह शुद्ध लेन-देन होता है, उपहार नहीं।
उपहार देने
वाले के साथ-साथ ही उपहार ग्रहण करने वाले की नीयत और भावना भी महत्वपूर्ण होती है। अक्सर उपहार ले लेने के बाद लोग उपहार देने वाले के पीठ-पीछे उपहार की नुक्ता चीनी करते हैं। कीमत के आध्ाार पर उसे छोटा या बड़ा गिफ्ट मानते हैं। सामान्य उपहार देने वाले की भावना से ज्यादा कद्र वे महंगे और दिखावे के लिए दिए गए उपहार की करते हैं।
उपहार में
प्यार छुपा है। कोई प्यार से आपके लिए कुछ लाए तो उस पर लगा टैग ढूंढने के बजाए ध्ान्यवाद और कृतज्ञता के साथ उस उपहार को स्वीकार करना चाहिए।
* निर्मला भुराड़िया
दरकते जीवन मूल्यो व छीजती संवेदना पर आपके सार्थक स्तम्भ के क्रम मे ही है यह ब्लोग
जवाब देंहटाएंबधाई