गुरुवार, 21 जुलाई 2011

सेंव पुराण!



www.hamarivani.comरफ़्तार"><span title=रफ़्तार" title="रफ़्तार" border="0">

आप यदि मालवा में हैं, यहाँ बारिश हो रही है ऐसे में आप किसी नमकीन की दुकान के सामने से गुजर जाएँ जहाँ सेंव तली जा रही हो तो आपका बारिश का आनंद द्विगुणित हो जाएगा। हो सकता है आप वहाँ रुक जाएँ और एक पुड़िया में महकती, गरमा-गरम, चटपटी, लौंग वाली सेंव लेकर वहीं खाने लगें। बस ज्यादा नहीं दो-चार फाँकों में खत्म होने जितनी। यह सेंव है ही ऐसी, जो थोड़े से में ज्यादा की संतुष्टि देती है। इंदौर में तो सेंव लोगों की भोजनचर्या का बेहद अनिवार्य हिस्सा है। पूरी, परांठा, पोहा हर चीज के साथ यहाँ सेंव खाई जाती है। यहाँ ऐसे लोग भी हैं, जो बाकी कितना भी परहेज कर रहे हों थोड़ी-सी सेंव जरूर खा लेते हैं, वह परहेज में शामिल नहीं होती। बेसन की बर्फी, नुक्ती या किसी और मिठाई के साथ भी यहाँ सेंव जरूर परोसी जाती है, कांट्रस्ट देकर मिठाई का स्वाद बढ़ाने के लिए। सेंव-परमल इंदौर का खास नाश्ता है। लगावन में यहाँ सेंव की सब्जी भी बना ली जाती है। और तो और, यहाँ शादी-ब्याह के स्पेशल मेनू में भी सेंव की सब्जी ठाठ से रखी जाती है, व्यंजन के तौर पर। कोई इंदौर से मुंबई, दिल्ली, चेन्नाई जा रहा हो तो मित्रों के लिए सेंव के पैकेट भी गिफ्ट के तौर पर ले जाता है। ऐसे सेंवप्रिय इंदौर में पली-बढ़ी हमारी भतीजी की शादी अमेरिका के न्यू जर्सी में हो गई। दिल्ली एयरपोर्ट पर बिदाई के वक्त जब वह रोने लगी कि इतनी दूर जा रही हूँ, तो उसके चाचा ने माहौल हल्का करने के लिए कहा, तू चिंता मत कर, तुझे घर से दूरी कभी महसूस नहीं होने देंगे, इंदौर की सेंव तेरे पास हमेशा पहुँचा देंगे। यह सुनकर वह रोते-रोते हँसने लगी थी यानी यहाँ की दुल्हन के लिए सेंव वतन का आसरा भी है!
जब मैं अमेरिका जा रही थी, तब एक और परिचित लड़की अनु, जिसकी बहन उस वक्त न्यूयॉर्क में रह रही थी, ने मुझसे कहा- 'मेरी बहन को इंदौर की सेंव बहुत पसंद है, क्या आप दो पैकेट सेंव उसके लिए ले जाएँगी? लगेज के वजन का सवाल तो था, पर स्नेह का मामला हो तो वह बोझ कहाँ होता है? मैंने हामी भरी तो अनु सेंव के पैकेट ले लाई, पर पैकेट दो नहीं चार थे। ठीक है, मैंने चारों पैकेट रख लिए। उस ट्रिप में पहला पड़ाव वाशिंगटन डीसी था, दूसरा सिएटल, तीसरा डलास और अंत में न्यूयॉर्क पहुँचना था। सो सेंव के पैकेटों ने मेरे साथ अमेरिका के चारों धाम की यात्रा कर ली। अमेरिका के हर डोमेस्टिक एयरपोर्ट पर सामान की गहन तलाशी हुई तो खटका बना रहा कि ये लोग कहीं मेरे सेंव के पैकेट निकालकर रख लें, पर ऐसा नहीं हुआ। कई शामों को होटल्स में भूख लगी, कुछ अच्छा वेजिटेरियन उपलब्ध नहीं था, मगर मैंने सेंव का कोई पैकेट नहीं खोला। अंत में चारों पैकेट मेरे साथ न्यूयॉर्क गए। न्यूयॉर्क में अनु की बहन पैकेट लेने मेरी होटल आती, उसके पहले भतीजी के पति गए। मुझे न्यू जर्सी ले जाने। मुझे अचानक ध्यान आया विदाई के समय सेंव भिजवाने की बात पर वह रोते-रोते हँसने लगी थी। अत: मैंने सोचा अनु तो वैसे भी दो ही पैकेट देने वाली थी और चार दे दिए हैं तो दो मैं भतीजी के लिए ले चलती हूँ और मैंने दो पैकेट सेंव न्यू जर्सी ले जाने के लिए साथ रख लिए।

न्यू जर्सी में भतीजी के घर हम डिनर पर बैठे। उसने कहा ताजा खाना है, सुबह ही बनाया है! और उसने बढ़िया दाल-चावल, फुलका, सलाद, गोभी की सब्जी आदि भारतीय खाना परोस दिया। फिर भीतर जाकर एक प्लेट में सेंव लाई और मेज के बीचों-बीच रख दी। उसने सेंव रखी तो मैंने उसकी ओर अर्थपूर्ण मुस्कान फेंकी। उसने एक झटके में उस मुस्कान को सीधी करते हुए कहा, 'यह आप लाईं वह सेंव नहीं है, न्यूयॉर्क में इंदौर की सेंव मिलने लगी है।"

हे भगवान तो मैं क्या समझकर सेंव के पैकेट ढोती रही और अपने स्वादचक्षुओं से लड़कर उन्हें संभालती रही। बहरहाल, न्यूयॉर्क लौटकर अनु की बहन को मैंने दो पैकेट सेंव जरूर दी। मगर न्यूयॉर्क में सेंव मिलना आल्हाद का विषय तो है ही। हम भारतीय जहाँ भी रहते हैं अपना छोटा-मोटा हिन्दुस्तान बना ही लेते हैं। अपनी संस्कृति, अपने स्वाद, अपनी परंपराएँ आप्रवासी सदा दिल में लिए रहते हैं। न्यूयॉर्क की प्रतिष्ठित टॉप शेफ मास्टर्स प्रतियोगिता में अभी-अभी फ्लाइड कार्डोज नामक व्यक्ति ने दक्षिण भारतीय उपमा को प्रायोगिक तरीके से बनाकर 1 लाख डॉलर यानी 45 लाख रु. का प्रथम पुरस्कार जीता है। भारतीय भोजन के नाम से अब विदेशी नाक-भौं नहीं सिकोड़ते, उन्हें चखने की कोशिश करते हैं। और तो और पद्मालक्ष्मी जैसे फूड शो होस्ट भारतीय भोजन के स्वाद और सुगंध में ग्लैमर का तड़का भी लगा रहे हैं।

-निर्मला भुराड़िया

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

जूलिया रॉबर्टस् के बालों में गुड़हल का फूल!


युवा फैशन डिजाइनर निदा महमूद की प्यारी सी तस्वीर देखी एक ग्लैमरस मैग्जीन में। वे इसमें आधुनिक परिधान में हैं, फोटो में दिख रहा परिवेश भी आधुनिक है। करीने से कटे बिलकुल छोटे बालों वाली निदा की केशसज्जा भी स्टाइलिश है। इस सबके बीच एक अलग ही चीज पर नजर जाती है। इस लड़की ने बालों में सुर्ख लाल फूलों का एक गुच्छा लगा रखा है। बालों में लगे ये फूल उसकी भीनी मुस्कान को और आकर्षक बना रहे हैं। इसे इस बात का प्रतीक मानें कि बालों में फूल लगाने का फैशन फिर आ रहा है तो यह एक शुभ संकेत है। इसे देखकर सहसा 'कथा" फिल्म की दीप्ति नवल की याद आ गई, जो बालों में गुड़हल का फूल लगाती है। इसके पीछे फिल्म की निर्देशक सई परांजपे का हास्यबोध तो था ही, यह प्रतीक और भी कुछ कहता था। चाल में रहने वाली हीरोइन के पास न बड़े-बड़े लॉन थे, न फूलों की क्यारियाँ। खोली के बाहर रखे गमले में खिला गुड़हल ही उस सीधी-सादी नायिका का गहना था। न मेकअप, न आभूषण, बस एक गुड़हल। सत्तर के दशक में कई नायिकाओं को बालों में फूल लगाए दिखाया जाता था। खासकर गुलाब का फूल। मैचिंग का भी चलन था, सो पीले, गुलाबी या लाल गुलाब का चयन वस्त्रों के हिसाब से कर लिया जाता था। हीरो अपनी हीरोइन के जूड़े में फूल लगाए यह तो सर्वोच्च रोमांस का प्रतीक था, जो दर्शकों को थ्रिल देता था। उन दिनों बाजारों में वेणी और गजरे वाले भी निकलते थे, साइकल पर अपनी टोकनी में दुकान लेकर, आवाज लगाते हुए। स्त्रियाँ या स्कूली बच्चियाँ शौक से ये बनी-बनाई वेणियाँ खरीदती थीं। मोगरा, जूही या चमेली की वेणियाँ स्त्रियाँ घर में भी बना लेती थीं। जिनके घर मोहल्लों में थे और बगीचा लगाने की खुली जगह नहीं थी, वे भी घर में गमलों में जूही, चमेली तो लगा ही लेते थे। फूलों-फलों से किया जाने वाला श्रृंगार इतना चलन में था कि महिलाएँ लाल-हरे करौंदों की वेणी भी पहन लेती थीं।

लगता है यह इको-फ्रेंडली श्रृंगार फिर लौटेगा। हाल ही में एक और फैशन मैग्जीन में एक ब्रेसलेट देखा, इमली के बीज यानी चीयों का बना हुआ। इस ब्रेसलेट में चीयों का मनकों की तरह इस्तेमाल किया गया था। एक समय था जब आदिवासी और अन्य लोग शंख, सीप, कौड़ी आदि से श्रृंगार करते थे, क्योंकि उन्हें वही उपलब्ध था। मगर अब श्रृंगार की ये वस्तुएँ फिर फैशन में आ रही हैं, अबकि पर्यावरण-मित्र फैशन का माहौल निर्मित करने के लिए। तो करें इंतजार शायद कभी कैटरीना कैफ निबौंलियों की माला पहने मिल जाएँ या जूलिया रॉबर्टस् भारत आए तो कोई प्रशंसक उनके बालों में गुड़हल का फूल लगा दे।

- निर्मला भुराड़िया