शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

देवी के देश में कमी 'अल्फा कन्याओं" की!

अल्फा यूनानी वर्णमाला का प्रथम अक्षर है। दुनिया में कई चीजें, जो सर्वप्रथम और सर्वोच्च मानी जाती हैं, उनके साथ अल्फा शब्द लगाकर उन्हें अहमियत देने का या उनकी सर्वोच्चता बताने का चलन है। तारामंडल में जो सबसे चमकदार तारा होता है वह अल्फा स्टार होता है। किसी भी प्राणी समाज में जिस नर को हर काम में प्राथमिकता दी जाती है, जिसका महत्व सबसे ऊपर होता है, जो सबसे ताकतवर होता है वह झुंड का अल्फा नर होता है। झुंड को उसका आदर करना होता है। अल्फा सबका लीडर होता है। उसकी काबिलियत पर सबको विश्वास होता है। प्राणी विज्ञानियों की यह शब्दावली साहित्य, समाज और मनोविज्ञान से जुड़े लोगों को भी इतनी पसंद आई कि धीरे-धीरे मनुष्यों के लिए भी अल्फा मैन शब्द का उपयोग होने लगा। यानी एक ऐसा पुरुष जो सजीला, ताकतवर, दबंग और निर्णय क्षमता रखने वाला हो। अत: उसे हर काम में वरीयता मिले। वह सबसे ऊपर हो। जब उत्कृष्ट पुरुषों को अल्फा मेल कहने का प्रचलन खूब चला तो नारीवादियों को भी लगा जब अल्फा मेल हो सकता है तो अल्फा फीमेल क्यों नहीं। शुरू में तो अल्फा मेल की साथिन को ही अल्फा फीमेल कहा गया जैसे डॉक्टर की पत्नी को डॉक्टरनी! मगर जब सदियों ने करवट बदली और स्त्रियों के अपने व्यक्तित्व ने सिर उठाया तो अपने व्यक्तिगत गुणों के कारण भी महिलाएँ अल्फा फीमेल कहलाने लगीं। अब अल्फा फीमेल वह है जो आत्मनिर्भर हो, अपने फैसले खुद लेने की काबिलियत रखती हो, जो साहसी हो, नेतृत्व क्षमता रखती हो। वगैरह। हाँ, यूँ ये अब भी तय नहीं है कि सारे गुणों के बावजूद अल्फा मेल की तरह अल्फा फीमेल को भी वरीयता मिल ही जाएगी! उसे हमेशा अपने आप को स्थापित करने के लिए हवा के खिलाफ संघर्ष करना पड़ेगा। पुरुष सर्वोच्च रहेगा क्योंकि वह पुरुष है।

हम भारतीयों को तो उधार की परिभाषाओं की भी जरूरत नहीं है। अल्फा फीमेल से कहीं आगे का प्रतीक हमारे पास है देवी और देवीशक्ति। देवियों के गुणों के प्रति हमारे मन में सम्मान है, इस शक्ति की साधना करते हैं। भारतीय महिलाओं ने काफी उन्नाति भी की है। लेकिन विडंबना यह है कि देवी पूजकों के इस देश में आज भी कन्याएँ जन्म पूर्व मारी जाती हैं। बेटियाँ बहुत से घरों में बेटों से हेय समझी जाती हैं। बेटा पैदा होता है तो वह अल्फा बॉय होता है, बेटियाँ भी लाड़ली होती हैं, मगर अल्फा गर्ल कम ही घरों में। हमारा देवीपूजन तभी सार्थक होगा जब लड़कियों के प्रति हमारा पूर्वाग्रह और गैर बराबरी वाला व्यवहार पूर्णत: खत्म होगा।

निर्मला भुराड़िया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें