बुधवार, 7 सितंबर 2011

जब पुरी ने कही खरी-खरी!


अभिनेता ओमपुरी से मेरी पहली मुलाकात भोपाल में हुई थी, होटल जहाँनुमा में, जहाँ मैं निर्देशक श्याम बेनेगल से साक्षात्कार के लिए गई थी। पेस्तनजी और राव साहेब जैसी फिल्मों की निर्देशक विजया मेहता भी वहीं ठहरी हुई थी। उनसे भी बातचीत हुई। बातचीत के बाद जब हम लोग लॉबी में आए, ओम पुरी भी मुस्कुराते हुए समीप आकर खड़े हो गए। वे बिलकुल चुस्त-दुरुस्त और फिट व्यक्ति थे। एकदम तनकर चलते थे, तोंद नाम की चीज नहीं थी। दूसरी बार मुलाकात पिछले दिनों नईदुनिया के कार्यालय में हुई। वे 'रंग दे बसंती" फेम निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ फिल्म 'तीन थे भाई" की पब्लिसिटी के लिए आए थे। इस बार वे इतने चुस्त नहीं दिखाई पड़ रहे थे। चेहरे पर भी मुस्कुराहट से ज्यादा जिंदगी की मार दिखाई पड़ रही थी। उनको देखकर लगा था क्या ये व्यायाम वगैरह नहीं करते? शायद कुछ ऐसी तकलीफ हो जिसकी वजह से व्यायाम नहीं कर पाते हों। ओमजी ने शर्ट पर टी शर्ट पहन रखी थी। अपनी सामान्य शर्ट पर तीन थे भाई की पब्लिसिटी वाली टी शर्ट। कैबिन में उन्हें गर्मी-सी लगी, तो वे ऊपर वाली टी शर्ट उतारने लगे। उन्हें ऐसा करते देख राकेश मेहरा यकायक कुर्सी से उठे और उन्हें टी शर्ट उतारने में मदद करने लगे। इस दृश्य को याद करके लगता है कि श्री पुरी ने अपने डगमगाकर सीढ़ी उतरने के बारे में जो कैफियत दी है कि सर्जरी के कारण उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ने में दिक्कत आती है, वह सही ही है। हो सकता है अल्कोहल भी लिया हो पर यहाँ टिप्पणी का विषय यह नहीं है।

खैर फिलहाल तो ओम पुरी चर्चा में इसलिए हैं कि समाजसेवी अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी मंच से उन्होंने नेताओं को खरी-खरी कही। नेताओं को यह अखरी-अखरी लगी। लिहाजा उन्हें विशेषाधिकार हनन नोटिस थमा दिया गया। हालाँकि श्री पुरी ने माफी माँग ली है कि उन्होंने नेताओं को '------", '------", '------" कहा। उन्होंने स्वयं की भाषा को सड़कछाप स्वीकार करते हुए अफसोस भी जताया है। उनकी इस माफी पर एशियन एज के कार्टूनिस्ट सुधीर तेलंग ने एक कार्टून बनाया है (देखें उपरोक्त कार्टून) जिसमें श्री पुरी यह कहते हुए माफी माँग रहे हैं, मैंने रामलीला मैदान में जो कहा उसके लिए माफी माँगता हूँ, दरअसल हमारे नेता बेहद पढ़े-लिखे हैं, हमारे सब राजनीतिज्ञ बहुत ईमानदार हैं, किसी का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, वे सदन में कभी माइक और कुर्सियाँ नहीं फेंकते, यहाँ कोई वोट बैंक पॉलीटिक्स नहीं होती, मनी और मसल पावर का इस्तेमाल नहीं होता। दरअसल यह कार्टून श्री पुरी पर आक्रमण नहीं करता। यह कार्टून उन नेताओं को निशाना बनाता है जो ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानो उन पर गलत आरोप लगा दिए गए हों। माना कि आक्रोश में भरे श्री पुरी की भाषा कुछ कच्ची थी मगर नीयत सच्ची थी। यदि किसी ने किसी कमजोर और वंचित का मजाक उड़ाया हो तो उसे असंवेदनशीलता कहा जाएगा। बलशालियों को उनकी औकात बताना तो साहस है, अभद्रता नहीं। सच तो यह है कि हर आदमी रेल पर, सड़कों पर, चौपाल पर और ड्राइंग रूम में नेताओं के बारे में यही कहता है। और इन्हीं शब्दों में। लोकतंत्र में इस अभिव्यक्ति को लोगों को डरा-डराकर रोका नहीं जा सकता। राजनीतिज्ञों को जो बातें सुनकर आत्ममंथन करना चाहिए उसे सुनकर वे खुन्नास खा जाते हैं। ओम पुरी का आक्रोश सच्चा था। टीवी कैमरा देखकर लोक-लुभावन बातें कर रहे हों ऐसा भी नहीं लगता, क्योंकि इंदौर में निजी बातचीत में भी वे इतने ही उद्वेलित थे। कह रहे थे, हमारे देश में चिंदी चोर तो बेचारा पकड़ा जाता है और बड़े लोग बड़े-बड़े भ्रष्टाचार करके घूमते रहते हैं। 'चिंदी चोर", जी हाँ उन्होंने ठीक यही शब्द इस्तेमाल किया था। यह भी वे सही ही कह रहे थे। सच को आईना दिखाना उन्हें महँगा पड़ गया।

- निर्मला भुराड़िया

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