अवसाद से उबरने लगें या उबर चुकें तब
* संतुलित, पौष्टिक, नियमित भोजन लें।
* शराब, सिगरेट, तंबाकू, पान-मसाला त्याग दें।
* शक्कर और चाय-कॉफी में कटौती करें।
* नियमित व्यायाम, सैर करें। तेज गति से पैदल चलें।
* ध्यान, प्राणायाम जैसी रिलेक्सेशन तकनीक अपनाएँ।
* अपने-आपको शारीरिक व मानसिक रूप से व्यस्त रखें।
* पौधों की निराई-गुड़ाई या घर के फर्नीचर की सफाई जैसे शारीरिक कार्य करें। खेलों में रुचि हो तो फुटबॉल, बैडमिंटन, क्रिकेट इत्यादि खेलें। चाहें तो बच्चों के साथ गिल्ली-डंडा ही खेलें। कोई आपको व्यावसायिक परफॉरमेंस की चिंता तो करना नहीं है। यह शारीरिक-मानसिक व्यस्तता न सिर्फ आपका मनोरंजन करेगी, बल्कि आपको जिंदगी में 'हिलगाए' रखेगी। आपके खुशी के हारमोंस का स्तर भी बढ़ाएगी।
* अपना हास्यबोध कायम रखें। आपके जीवन के बड़े वाले तनाव कौन-से हैं, उन्हें सुझाव के द्वारा स्वयं को समझाएँ कि जीवन का यह भी एक पक्ष है।
* अपनी बॉडी क्लॉक या शरीर की घड़ी को डिस्टर्ब न करें। बिना बात देर तक जागने, सरे-शाम सो जाने आदि आदतों से बचें। रात को नियत समय पर सो जाएँ। सुबह-सवेरे नियत समय पर उठें, पर नींद में कटौती न करें। ऐसा चार्ट बनाएँ कि सही समय पर सोने-उठने में ही आपकी कम से कम सात-आठ घंटे की नींद पूरी हो जाए। नींद को नियमित और पूरी रखने से आपके मिलेनिन नामक हारमोन का चक्र दुरुस्त रहेगा, जैविक घड़ी ठीक रहेगी, इससे सामान्य स्वास्थ्य और स्वाभाविक प्रसन्नता बनी रहेगी।
अवसादग्रस्त को परिजनों की सहायता-
* मरीज की मन:स्थिति समझने का प्रयास करें। उसे उसकी स्थिति के बारे में ताने न मारें। न धिक्कारें, न खिल्ली उड़ाएँ। वस्तुस्थिति समझकर अपने वैज्ञानिक सोच का परिचय दें।
* मरीज के प्रति नरम रुख रखें, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखें। उसके प्रति कठोरता, कटुता न बरतें। यह समझें कि अभी वह सामान्य स्थिति में नहीं है।
* यह मरीज को उसकी कमियाँ गिनाने का समय नहीं है। उसका आत्मसम्मान बढ़ाने और हीनताबोध से िनकलने में उसकी मदद करें।
* यह समझें कि बीमार होने में उसकी कोई गलती नहीं है। उसे कोसें नहीं। उसकी नकारात्मकता की तात्कालिक है, यह समझें। हालाँकि यह सब आपके धैर्य की परीक्षा है। पर यह ध्यान रहे। आपका धीरज ही उसका इलाज है, आप तो सामान्य अवस्था में हैं, उसे दोष देकर उसकी ग्लानि न बढ़ाएँ।
* उसे किसी मनोचिकित्सक को िदखाएँ। मनोचिकित्सक के पास जाने में िझझकें नहीं। मरीज चिकित्सा के िलए तैयार न हो तो उसे बहला-फुसलाकर इलाज हेतु तैयार करें। उसके द्वारा दवा फेंक देने की आशंका हो तो अपने हाथ से दवा दें।
* घर का वातावरण हलका-फुलका, आनंदमय बनाने की कोशिश करें। मरीज के साथ कैरम आदि जैसे मनोरंजक खेल खेलें। उसे पिकनिक पर ले जाएँ। हो सके तो किसी हिल स्टेशन आदि की यात्रा भी की जा सकती है, ताकि उसके आसपास का माहौल कुछ समय के लिए बदल जाए। इससे नीरस जीवन के साथ ही िदमाग का भी थोड़ा ट्रैक बदलेगा। मरीज कुछ समय को ही सही, निर्जीव-नकारात्मक निराशा से उबरेगा।
क्यों जरूरी है दवाइयाँ-
अवसाद की बीमारी एक शारीरिक-परिवर्तन ही है और एंटी डिप्रेसेंट दवाइयाँ मरीज के शरीर में रसायनों के कम हुए स्तर को पुन: दुरुस्त करती हैं। हाँ यह दवाइयाँ थोड़ा धीरे-धीरे प्रभाव करती हैं। मगर तीन-एक हफ्ते में इनका असर नजर आने लगता है। ये दवाइयाँ लेना बहुत जरूरी है। मगर किसी िचकित्सक की देखरेख में।
चिकित्सक दवाइयों के अलावा अन्य थैरापी भी करते हैं। जैसे 'साइकोथैरापी', जिसमें मरीज का 'मनोविश्लेषण किया जाता है। उसकी कठिनाइयों को, उसके उलझ गए धागों को समझा-सुलझाया जाता है। 'कॉगनीटिव थैरापी', जिसमें जीवन के प्रति मरीज के नजरिये, उसकी भावनाओं को समझा जाता है। 'बिहेवियर थैरापी', जिसमें मरीज के व्यवहार को सकारात्मक िदशा में मोड़ा जाता है। 'इंटरपर्सनल थैरापी', जिसमें यह समझा जाता है कि मरीज की परेशानी कहीं िकसी रिश्ते में दरार की वजह से तो नहीं। तब चिकित्सक परामर्शदाता द्वारा उस रिश्ते में पुल बनाने की पहल और प्रयास किया जाता है। 'फैमिली थैरापी', मरीज के परिवार की मदद ली जाती है। यह सब बहुत-से परीक्षणों के बाद तैयार, बेहद वैज्ञानिक प्रविधियाँ हैं, मगर इनका लाभ लेना तो तभी संभव है न कि जब आप चिकित्सक से सम्पर्क करें।
'कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों। पास नहीं तो दूर ही होता, लेकिन कोई मेरा अपना।' शायर गुलजार का यह फिल्मी गीत है। यह बिल्कुल सटीक है। जीवन में हर व्यक्ति को भावनात्मक आधार चाहिए। जिनके पास परिवारजों और िरश्तों का सपोर्ट सिस्टम नहीं होता, उनके अवसाद में जाने के ज्यादा आसार होते हैं। किसी से घनिष्ठता, किसी से खुलकर अपनी बात कह पाने की सुविधा शॉक एब्जॉरवर का काम करती है। अत: अपनों से सम्पर्क रखें। लगाव रखने की क्षमता वाले मित्र बनाएँ। कभी मित्रों से िदल की बात करें, फोन लगाएँ, घूमे-फिरे, मिले-जुलें, अच्छा व्यवहार करें, बदले में अच्छा व्यवहार पाएँ। इससे मन हलका रहेगा।
साथ ही मेडिकल चिकित्सा भी जरूरी है, क्योंकि डिप्रेशन मस्तिष्क में एड्रेनलीन और सिरोटॉनिन जैसे रसायनों की कमी से होता है, जिनके जरिये मस्तिष्क की कोशिकाएँ आपस में बात करती है। अवसादरोधी दवाइयों एवं चिकित्सक द्वारा सुझाई गई अन्य दवाइयाँ उपरोक्त रसायनों का संतुलन पुन: स्थापित करती हैं। अत: चिकित्सक के मार्गदर्शन में इन्हें लेने में िझझक कैसी?
(समाप्त)
- निर्मला भुराड़िया