पाकिस्तान की सौतनें
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इन
दिनों जिंदगी चैनल पर लोकप्रिय पाकिस्तानी सीरियल आ रहे हैं। वे बड़ी खूबसूरती से
बनाए गए हैं। हमारे यहां के धारावाहिकों की तुलना में वे काफी बेहतर हैं। उसकी
कई वजहें हैं। हमारे यहां के सीरियल, विज्ञापन मिलते जाने के साथ ही, चबाई
हुई चुइंगम की तरह लंबे खींचे जाते हैं, कहानी क्या से क्या बना दी जाती है।
कहानियां और पात्र अतिशयोक्तिपूर्ण और नाटकीय होते हैं, असल जीवन का प्रतिबिंब नहीं होते। अत: यह
छोटे पर्दे पर लिखा साहित्य नहीं टाइम स्लॉट में भरा जाने वाला बेतुका कचरा अधिक
होता है। वहीं पाकिस्तानी धारावाहिक निश्चित एपिसोड तय करके बनाए होते हैं जैसे
तेईस या छब्बीस। कहानीकार ने जो लिखी वही कहानी होती है। पाकिस्तान का वर्तमान
समाज, उसका
व्यवहार, उसके
चलन, किरदारों
का मनोविज्ञान आदि बड़ी सूक्ष्मता से इन धारावाहिकों में उकेरा जाता है। इसके साथ
ही आप रूबरू होते हैं पाकिस्तान की औरतों की स्थिति से। वहां पुरुष एक से अधिक
शादी करने का कानूनी हक रखता है सो उनकी भाषा में कहें तो वह कभी भी 'पत्नी
पर सौत बैठा सकता है।" छोटी-मोटी गलती पर आदमी पत्नी को
धमकी देता है कि वह उसे छोड़ देगा, क्योंकि वहां एकतरफा तलाक भी हो जाता है। आदमी
जब चाहे तलाक दे देता है, मुंह से बोलकर या तलाकनामा भेजकर। वहां
औरत को इसे मंजूर न करने का अधिकार नहीं है। अक्सर स्त्री पात्र गिड़गिड़ाती हुई
मिलती है कि मुझे छोड़ना मत, मैं कहां जाऊंगी? वैसे
एक को छोड़े बगैर भी दूसरी स्त्री तो लाई ही जा सकती है। इस नाइंसाफी के बाद भी
स्त्री का दर्द समझने के बजाय उसके द्वारा सौतन से बहनापा रखने की उम्मीद की जाती
है। ग्लानि महसूस करना तो दूर पुरुषों की तरफ से जुमले उछाले जाते हैं कि दूसरी
शादी करना कोई गुनाह नहीं! ठीक है कि आपने कानून ऐसे गढ़ रखे हैं
कि पुरुषों को विशेष छूट मिल जाए, मगर भावनाओं का क्या किया जाए? कानूनी
तौर पर कितना ही जायज हो, पति द्वारा दूसरी औरत लाने पर बीवी को गहरी भावनात्मक ठेस
तो पहुंचती ही है। उधर जो दूसरी बीवी बनकर आती है उसके लिए भी कम मुसीबत नहीं
होती क्योंकि वहां अक्सर कोई औरत दूसरी औरत इसलिए बनती है कि पाकिस्तानी समाज में
अकेली औरत का न कोई मुकाम है न कोई आर्थिक-आत्मनिर्भरता। उसे आर्थिक-सामाजिक
सुरक्षा के लिए शादी ही करना होती है। फिर चाहे उसे छत देने वाला पुरुष पहले से
विवाहित या उम्र में उससे दुगुना हो। आत्मनिर्भर सिंगल वुमन की अवधारणा वहां काम
करती दिखाई नहीं देती। मर्द आधारित समाज व्यवस्था आमतौर पर स्त्री को कम-पढ़ा
लिखा और आर्थिक आत्मनिर्भरता से वंचित रखती है। औरत को गुलाम बनाए रखने की यह
साजिश काम कर जाती है जब अपने से आधी उम्र की लड़की से शादी करके पुरुष ऊपर से
एहसान जताता है, अपनी महानता का गुणगान करता है कि उसने तो एक लड़की को आसरा
दिया है और पहली बीवी इतनी संगदिल है कि 'उस बेचारी"
के प्रति रुखाई
बरतती है! यानी
जो छली जाती है वह तो औरत ही होती है चाहे ये हो चाहे वो। इन सीरियलों में पुरुष
को सही साबित करने के लिए पहली पत्नी बुरे स्वभाव की और बाद वाली पत्नी सही बताई
जाती है, ताकि
कानूनी रूप से जायज दूसरी शादी को भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी जायज बताने का
षड्यंत्र जारी रखा जा सके। पाकिस्तान के लगभग सभी सीरियल सौतनों से भरे पड़े हैं
क्योंकि उनके समाज का सच भी यही है। इन सीरियलों के बहाने पाकिस्तान के समाज को
भीतर से देखने का मौका मिल रहा है। पाकिस्तान की आम स्त्री हर पल असुरक्षा में
जीती है। आत्मनिर्भर स्त्रियां भी वहां हैं मगर हमारे यहां से बहुत कम क्योंकि उस
समाज का मिट्टी पानी उन्हें फलने-फूलने की इजाजत नहीं देता। इन
स्त्रियों को देखकर प्रसिद्ध गीतकार साहिर लुधियानवी के एक गीत 'औरत
ने जनम दिया मर्दों को..." का एक हिस्सा याद आता है-
'मर्दों के लिए हर जुल्म रवां, औरत के लिए रोना भी खता
मर्दों
के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता
मर्दों
के लिए हर ऐश का हक, औरत के लिए जीना भी सजा।"
-देखना है अब कौन-सी मलाला पाकिस्तान की स्त्रियों को सौतनों
से छुटकारा दिलाने आती है।
-निर्मला भुराड़िया