अपनी बात
मध्यप्रदेश के एक शहर की एक कॉलोनी का नजारा करें। कॉलोनी के अधिकांश मकान बहुमंजिला हैं। एक प्लॉट खाली पड़ा है। वह खाली प्लॉट पूरी कॉलोनी का कचरा घर है। यह सुअर और आवारा कुत्तों का भी घर है। रात घिरते न घिरते एक और किस्म के प्राणी, झुंडों में, कॉलोनी में आ जाते हैं। यह हैं गायें। कॉलोनी के ही एक कोने में इन गाय पालकों के घर हैं। तो सांस्कृतिक भाषा में तो यह कहना चाहिए कि गोधूलि बेला (!) में गायें चरकर घर लौटती हैं, पर घर की बजाय वे आसपास की सड़कों पर खड़ी हो जाती हैं। सारी सड़क को गोबरमय कर देती हैं। ऊपर से बारिश हो जाए तो अजीब-सी गंध से पूरी कॉलोनी का सिर गंधाता है। कॉलोनी के लोग परेशान हो जाते हैं, पर कौन बोले? क्योंकि ये गैयाएँ किन्हीं छुटभैए नेता की अमानत हैं। वही गोपालक नेता, जिनके घर इस कॉलोनी के किनारे बने हैं। ये अमानत उनके घर दूध दुहने के लिए ले जाई जाती हैं फिर दिन में शहर में चरने एवं रात में कॉलोनी में विश्राम करने के लिए सड़कों पर छोड़ दी जाती हैं। पर, शहर में चूँकि खेत, खलिहान, चारागाह आदि तो हैं नहीं,अत: ये गाएँ कागज, प्लास्टिक, खाद्य-अखाद्य न जाने क्या-क्या चर कर घर लौटती हैं। आश्चर्य होता है कि यह सब चर कर गाय किस प्रकार का दूध देती होगी और यह दूध पी कैसे लिया जाता होगा? कॉलोनी की सड़क, प्लॉट, पशुओं आदि-इत्यादि को देखो तो एहसास होता है हम लोग कितने घृणित रूप से अस्वच्छ हैं!
इन आवारा गायों के खिलाफ कभी कोई अभियान सफल नहीं हो पाया। उसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि गोपालक राजनीतिक लोग हैं। वो कितनी भी गंदगी करें, उस गंदगी को हटाया नहीं जा सकता। उनकी गलत-सलत बातें भी उनकी पॉवरफुल मूँछों से बँध कर सुरक्षित हैं। दूसरी बात यह कि पॉवरफुल की मूँछ से गाय बाँध कर, गाय की पूँछ से हमने पवित्रता बाँध दी है। एक तोराजनीतिक ऊपर से पवित्र यानी गाय से संबंधित किसी भी बुराई की ओर ध्यान नहीं दिलाया जा सकता। 'पवित्र गाय' का धार्मिक विशेषण देकर उसके साथ खासी संवेदनशीलता को नत्थी कर दिया है। इतना कि 'गाय' का नाम लो तो दंगे हो सकते हैं। या जिनकी दंगा कराने की इच्छा हो वो 'पवित्र गाय' के बहाने दंगा भड़का सकते हैं। गाय के दूध के साथ ही गाय के साथ जुड़ी धार्मिक संवेदना को भी दुहते हैं। अत: जरूरी है कि यह भी देखा जाए कि गाय को पवित्र मानकर गाय के नाम पर दुनियाभर की माथा-पच्ची करने वाले स्वयं गाय के साथ क्या करते हैं? चलिए देखते हैं।
यह सभी जानते हैं कि दूध बछड़े के लिए होता है, उसे पीते हम हैं। खैर इस बात के भी अपने तर्क हैं कि बछड़े को पहले पिलाकर बचा हुआ दूध निकालते हैं या सृष्टि का भोजन चक्र ही ऐसा है कि हर प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर है। यहाँ तक ठीक है, बिलकुल ठीक! लेकिन पिछले दिनों एक अजीब वाकया मालूम हुआ। एक गाय का बछड़ा मर गया था। गाय बछड़े की ममता में ही दूध देती है। बछड़े की मौत पर गाय दूध देना बंद न करे अत: एक गोपालक ने मृत बछड़े की खाल में रुई भर दी है। दूध दुहने के समय पर मृत बछड़े को गाय के समीप रख दिया जाता है। वह उसे चाटती है तो दूध उतरता है। गाय को दुह कर मरे हुए बछड़े को हटा लिया जाता है! इसी तरह घरों में आपको यह दृश्य दिखेगा कि थोड़ी देर पहले रोटी खानेवाली गाय थोड़ी देर बाद डंडा खाती है। पुण्य की आशा में रोटी खिलाई, पुण्य-वुण्य शायद मिल गया तो अब पवित्र गाय यहाँ-वहाँ मुँह मारने वाली आवारा गाय में तब्दील हो गई, सो इसे हकाला जा सकता है। गोवर्धन पूजा के दिन सजी-धजी गाय की पूजा करने के बाद भी 'हट्-हट्, जा यहाँ से' का मंत्र, डंडाध्वनि के साथ पढ़ने का पुराना रिवाज है, मगर यूँ कि हम हमारी पवित्र गाय के साथ कुछ भी करें,पर आप कुछ न कहो। गोमूत्र चिकित्सा पर कभी आप सवाल उठा दीजिए। लोग पवित्रता का हवाला देते हुए आपके पीछे पड़ जाएँगे। दुनिया में किसी भी औषधि के गुण-दोषों दोनों पर विचार किया जा सकता है,पर गोमूत्र में पस सेल्स भी हो सकते हैं, इस आशंका पर आपको चुप्पी साधना होगी, क्योंकि गोमूत्र के बारे में तो शुभ-शुभ ही बोलना है। गुण गा सकते हैं तो गाइए नहीं तो चुप रहिए। गोमूत्र व्यवसायी आमजन की इस धर्मभीरूता का बहुत फायदा उठाते हैं।
समयानुसार चीजों की पुनर्व्याख्या न करने के कारण और भी विसंगतियाँ होती हैं। जैसे किसी ज्योतिषी ने बताया कि गाय को चारा खिलाओ पुण्य मिलेगा, तो इन पुण्याकांक्षियों के लिए व्यवस्था आपको शहर में कहीं न कहीं मिल जाएगी। जहाँ एक व्यक्ति ढेर-साचारा लिए बैठा होगा,पास में उसी की गाय बँधी होगी। पुण्याकांक्षी जाएगा, चारेवाले से चारा खरीदेगा और पास खड़ी उसी की गाय को खिला देगा। लीजिए मिल गया रेडीमेड पुण्य (ज्योतिषियों के बढ़ते प्रभाव को देखकर संदेह है कि आधुनिक मॉल्स में ही कहीं पुण्याकांक्षियों के लिए चारा सेंटर न खुल जाएँ, जहाँ अमेरिकी काऊ बॉय के ड्रेसअप में गोपालक गाय के संग खड़े हों!)। अच्छा पता है, यह 'सौभाग्य' से प्राप्त हुआ चारा खाकर पवित्र गौमाता प्यास बुझाने कहाँ जाएँगी? बताने के लिए कोई इनाम नहीं है। मूत्रालयों की सड़क किनारे के गड्ढों में आपने मानव-मूत्र के पोखरों में मुँह डाले खड़ी गायों को देखा होगा! क्या इससे गाय की पवित्रता खंडित नहीं होती? क्या सही आलोचनाओं से ही गाय की पवित्रता खंडित होती है?
- निर्मला भुराड़िया
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