आधुनिक अनुसंधानकर्ताओं का कहना है, जब भोजन के साथ प्रयास जुड़ जाएँ, तो वह भोजन ज्यादा स्वास्थ्यकारी, ज्यादा आनंदकारी हो जाता है। मसलन, वे कहते हैं- गपागप खाई जाने वाली िकसी चीज के बजाए आप संतरा छीलकर खाएँगे तो यह भोजन स्वाद और पौष्टिकता के साथ ही 'स्ट्रेस बस्टर' का भी काम करेगा, क्योंकि यहाँ आपने िदमाग के स्वाद केन्द्र के साथ ही अपने हाथ और मुँह को भी काम में जुटा िलया है। यानी सीधी सी बात यह है कि किसी चीज में हम प्रयास जोड़ लें तो वह रिक्तता भरेगी। बगैर प्रयत्न के िमलने वाली चीजों का कई बार हमारी खुद की ही नजर में कोई महत्व नहीं होता।
अमेरिका के अतिसंपन्न रॉकफेलर परिवार का एक उदाहरण है। इस परिवार के पास अनंत धन-संपत्ति-यश रहा है, लेकिन इस परिवार का एक पुत्र आलीशन जिंदगी के सब ऐशो आराम तजकर एक लातीन अमेरिकी देश के एक पिछड़े कबीले में रहने चला गया था। जहाँ वह कामकाज से भरी दिनचर्या में आनंद पाता था। परिवार ने बहुत समझाया पर वह नहीं माना, क्योंकि उसे उस ऐशो आराम में बहुत ऊब और रिक्तता महसूस हुई जो उसने नहीं कमाया था, क्योंकि अर्जित करने का आनंद तभी आता है, जब आप उसे अपने प्रयास से प्राप्त करते हैं। यदि यह लड़का कबीले की तरफ नहीं जाता तो शायद कोकीन की तरफ जाता, क्योंकि उसके पास कर्म का आनंद और एचीवमेंट का नशा नहीं होता। अत: अतिसुविधामय जीवन की ऊब भरने के लिए कोकीन लगती।
दरअसल, जैसे गपागप खाने वाली चीजों में आधा मजा है, उसी तरह पकापकाया, रेडीमेड जीवन जीने में भी आधा ही मजा है। जीवन का असली मजा है लगे रहने में। कर्मशील व्यक्ति को जिंदगी धूप में बैठकर 'छोड़' खाने की तरह आनंदमयी लगती है।
- निर्मला भुराड़िया
बढिया है........ राकफेलर परिवार का उद्य्हरण अच्छा दिया आपने.
जवाब देंहटाएंरेडीमेड जीवन जीने में भी आधा ही मजा है।........Agreed…
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