पुण्य के निमित्त उपवास करने वाले यह कहते नहीं अघाते कि उपवास धार्मिक ही नहीं एक वैज्ञानिक प्रविधी भी है, जिसे हमारे पूर्वजों और ऋषि-मुनियोंने अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही निर्मित किया था। लोगों का ऐसा समझना 'कुछ हद तक' सही ही है। मगर कुछ हद तक ही क्यों? इसलिए कि सैकड़ों-हजारों साल पहले चलन में आई कोई भी चीज जरूरी नहीं कि आज के हालात में भी अक्षरश: सही बैठे। योरप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया,अरब देशों आदि के ट्रेडिशनल विस्डम यानी पारम्परिक ज्ञान पर गहरा अनुसंधान करने वाले अनुसंधानकर्ता एवं लेखक स्टेन गूश कहते हैं कि कुछ चीजों में पारम्परिक ज्ञान की गहरी वैज्ञानिकता देखकर सचमुच चमत्कृत हो जाना पड़ता है, जैसे मध्ययुगीन योरप के कुछ इलाकों में एक खून पीने वाली चुड़ैल का अस्तित्व माना जाता था,जो कि लहसुन से डरती थी! यानी मान्यता थी कि लहसुन घर में रखो (यानी भोजन में इस्तेमाल करो) तो चुड़ैल नहीं आएगी! गूश कहते हैं आगे की वैज्ञानिक सदियों में पता चला लहसुन का प्रयोग दिल के मरीजों के लिए अच्छा है। लेकिन गूश आगे यह भी कहते हैं कि सारे के सारे पारम्परिक ज्ञान पर यह बात लागू नहीं होती। क्योंकि प्रथम तो पारम्परिक ज्ञान स्मृति की भी स्मृति है (ए मेमोरी ऑफ ए मेमोरी)। फिर कुछ पारम्परिक रूपों को समय-काल के साथ बदला जाना चाहिए, ज्यों का त्यों नहीं अपनाना चाहिए। क्योंकि कुछ भी अपरिवर्तनीय नहीं है।
खयाल आया कि स्टेन शूग के विचारों को हम अपनी उपवास संबंधी पद्धतियों पर लागू क्यों न करें? सच तो यह है कि किसी तिथि, त्योहार पर उपवास करने से बेहतर है व्यक्ति अपनी उम्र, अपनी बीमारी, अपनी दैहिक संरचना के हिसाब से यह तय करे कि उसे क्या खाना है, क्या नहीं खाना है? कब खाना है, कितनी मात्रा में खाना है। और कुछ बीमारियों में तो व्यक्तियों को चिकित्सक द्वारा सुझाई किन्हीं चीजों का 'सदा का उपवास' भी करना पड़ सकता है। उपवास शब्द का सही अर्थ और सही परिभाषा भी यही है। किसी खास दिन साबूदाना खाकर दिन निकाल देना उपवास नहीं है। न ही किसी खास त्योहार पर अन्न को छूना भी मना है जैसे पाप बोध से ग्रसित होना उपवास है। उपवास का अर्थ है संयम। अपनी देह को स्वस्थ रखने के लिए अति आहार, असमय आहार और अखाद्य आहार पर संयम।
तो चलिए, सोचें क्या नए जमाने का व्रत कुछ इस तरह डिजाइन हो सकता है कि मधुमेह वाले लोग जलेबी, गुलाब जामुन आदि मिठाइयों का संयम करें, ब्लडप्रेशर वाले नमक,अचार,पापड़, सेंव का। माइग्रेन वाले गरम कॉफी, पनीर,चॉकलेट का संयम करें,बढ़े कोलेस्ट्रॉल वाले घी, तेल, मक्खन आदि फैट का। बढ़ते बच्चे को; खासकर किशोरियों को माँ-बाप धार्मिक उपवास करने का दबाव डालने के बचाए बताएँ कि वे कभी-कभार पित्जा, बर्गर, कोला आदि 'एम्टी कैलोरी' चीजों का संयम करें। पर इसलिए नहीं कि ये विदेशी हैं, इसलिए कि इनमें विटामिन, प्रोटीन आदि की पौष्टिकता नहीं,सिर्फ कैलोरी है; वह भी मोटापा बढ़ाने वाली। बच्चों को इन चीजों से दूर रखने के लिए 'संस्कृति' की रट न लगाएँ, क्योंकि आगे हमारी भी कुछ चीजें हैं जिनके 'उपवासी' आपको कभी-कभी रहना है। या कहें इन्हें आपको कभी-कभी ही खाना है। यानी माँ-बाप स्वयं पूरी,कचोरी,पकौड़ी, अति घी-तेल, मिर्च-मसाले वाले व्यंजनों के अक्सर उपवासी रहें तो अच्छा ही है। यह नहीं कि उपवास किया और कुटू की पकौड़ी खा ली। माफ कीजिए, नए समय की अवधारणाओं के अनुसार आपका उपवास इन चीजों से टूटेगा,दलिया खाने से नहीं! और आपका उपवास पौष्टिक चीजें खाने से होगा भूखे रहने से नहीं! जी हाँ, हाल ही में एक फैशन पत्रिका ने युवतियों के लिए बगैर मेकअप सुंदर लगने के लिए एक 'मिरेकल डाइट' प्रोग्राम दिया है, जिसमें गेहूँ, जुवार, बाजरा, दालें, हरी सब्जियाँ, दही, स्कीम्ड मिल्क, उगे हुए मूँग शामिल हैं। और हाँ, मुँह मीठा करने के लिए तिल की चक्की भी। अत: उपवास कर-करके अपने आपको डायटिंग पर समझने वाली महिलाओं को बाजरिए इन न्यूट्रीशनिस्ट बताया जा सकता है कि आप सिर्फ ककड़ी खा-खाकर उपवास करेंगी तो ककड़ी ही जाएँगी, उल्टे सौंदर्य खो देंगी और जिस मोटापे के लिए आप यह कर रही हैं वह और बढ़ सकता है, क्योंकि इस तरह के उपवास करने से आपका मेटाबोल्जिम बदल जाएगा। शरीर को लगेगा यह खाती नहीं तो वह फैट्स स्टोर करेगा और आपकी मोटापे की टेंडेंसी हो जाएगी। यानी खाइए पर सही समय पर,सही चीजें खाइए। यह उचित नहीं कि एकासना किया और एक वक्त तो गले तक गरिष्ठ भोजन किया और दूसरे वक्त खाली पेट रहे। उपवास करना ही है तो एक ही बार में ठूँस-ठूँसकर न खाने का व्रत लीजिए। नाश्ता व सादा भोजन नियत समय पर अवश्य कीजिए ताकि बार-बार छुट-पुट चीजों की ओर हाथ न बढ़े। मैदा और शक्कर जैसी चीजें कम खाइए,फाइबर डाइट बढ़ाइए।
कुछ लोग यह भी सोच रहे होंगे उपवास का संबंध तो अध्यात्म से भी है। नई पद्धति अपना ली तो अध्यात्म का क्या होगा। घबराइए मत, उसके लिए भी जगह है। इन दिनों वैज्ञानिकों द्वारा 'मूड फूड्स' की पूरी लिस्ट जारी कर दी गई है, जो यह बताती है कि कौन-कौन से खाद्य पदार्थ आपका मूड अच्छा करते हैं, कौन-कौन से खराब। कौन-सा भोजन आपको उत्साहित करता है और कौन-सा सुस्त बनाता है। पारम्परिक ज्ञान के प्रेमियों के लिए खुशखबरी यह है कि यहाँ नए जमाने का मूड फूड विभाजन ठीक वैसा ही है,जो हमारे यहाँ सात्विक, राजसी और तामसिक भोजन का हुआ करता था।
- निर्मला भुराड़िया
तो चलिए, सोचें क्या नए जमाने का व्रत कुछ इस तरह डिजाइन हो सकता है कि मधुमेह वाले लोग जलेबी, गुलाब जामुन आदि मिठाइयों का संयम करें, ब्लडप्रेशर वाले नमक,अचार,पापड़, सेंव का। माइग्रेन वाले गरम कॉफी, पनीर,चॉकलेट का संयम करें,बढ़े कोलेस्ट्रॉल वाले घी, तेल, मक्खन आदि फैट का। - वाकई में ये लाइनों ने आलेख की शोभा बढ़ा दी हैं। ऐसे ही लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंसच तो यह है कि किसी तिथि, त्योहार पर उपवास करने से बेहतर है व्यक्ति अपनी उम्र, अपनी बीमारी, अपनी दैहिक संरचना के हिसाब से यह तय करे कि उसे क्या खाना है, क्या नहीं खाना है.
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ऋषियों ने जो निर्धारित किया है, वह सर्वोत्तम है, उससे रत्ती भर भी हटना दोषपूर्ण ही होगा.
आपके इस चिंतन में ऋतु का उल्लेख नहीं किया गया है.
ज्ञानवर्धक तथा रुचिकर आलेख
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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