मेजर डिप्रेशन या यूनीपोलर डिप्रेशन
इसमें व्यक्ति की अवस्था के बिगड़ने के लक्षण बहुत गंभीर होते हैं। यह कुछ महीनों या सालभर तक चल सकता है। अवसाद के ये दौरे जिंदगी में और कई बार भी आ सकते हैं। इसमें कुछ लोग तो अपने-आपको औरों से काट लेते हैं। मगर कुछ विध्वंसात्मक, चिड़चिड़े, बुरा व्यवहार करने वाले हो जाते हैं और वे ये कतई नहीं समझ पाते िक वे नकारात्मक व्यवहार कर रहे हैं।
क्रॉनिक डिप्रेशन : इसे dysthymia भी कहा जाता है। यह थोड़ा हलका अवसाद होता है। मगर यह सालों तक चल सकता है। ऐसे व्यक्ति नाखुश रहते हैं। जीवन का आनंद उठाने के बजाय चिड़चिड़े हो जाते हैं। ये कभी भी मेजर डिप्रेशन में जा सकते हैं।
एटिपिकल िडप्रेशन : इस डिप्रेशन को पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि इससे घिरे व्यक्ति कभी-कभी खुश भी होते हैं। मगर ये जीवन के सामान्य व्यवहारों की अति भी कर सकते हैं। जैसे निरंतर खाते रहना, खूब ज्यादा सोना, अच्छा-खासा वजन बढ़ाना इत्यादि।
reactive, neurotic या psychotic depression में भी फर्क होता है। reactive depression भावनात्मक तनाव का परिणाम हो सकता है। neurotic depression शब्द का सामान्यतया इस्तेमाल ऐसे समय किया जाता है, जब तनाव या घटना के अनुपात में व्यक्ति की अवसादी प्रतिक्रिया काफी अधिक हो। इसमें ऐसा भी हो सकता है कि पूर्व में हुई या दबाई गई भावनात्मक पीड़ा की प्रतिक्रिया बाद में हो। मगर इनमें सबसे गंभीर psychotic depression माना जा सकता है, क्योंकि इसका कोई खास बाहरी करण नहीं िदखाई देता। कई बार िजंदगी में िमले-जुले दबावों से भी अवसाद हो सकता है, जिसमें भावनात्मक तनाव, शारीरिक बीमारी या शरीर में हार्मोन परिवर्तन की वजह से अवसाद हो सकता है।
अवसादग्रस्त व्यक्ति स्वयं की मदद कैसे करें?
* परिजन इलाज की पहल करें तो उसे न ठुकराइए। स्वयं ही िचकित्सकीय सहायता लेने का सोचा है तो मनोचिकित्सक के पास जाने में न शर्माएँ। इलाज अवश्य कराएँ।
* मन में यह ग्लानि न रखें िक आपकी बीमारी कोई कमजोरी या कलंक है। किसी भी अन्य बीमारी की तरह यह भी िबन बुलाए आ धमकती है। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है।
* दवा ठीक वक्त पर बराबर लें। उसे फेंके या छुपाएँ नहीं।
थोड़ा सुधार होने पर
* लम्बे समय तक अकेले न रहें।
* नई रुचियाँ विकसित करने का प्रयास करें पुरानी रुचियों को सँवारने, िनखारने का प्रयास करें, ताकि जिंदगी में चाव पैदा हो।
* अपने व्यक्तित्व की खूबियों पर भी कभी गौर करें। पीछे मुड़कर अपनी किन्हीं खुशियाँ, किन्हीं उपलब्धियों पर भी नजर डालें। चाहे वे छोटी हों या बड़ी।
* आपको नीचा दिखाने वाले, आप पर नकारात्मक टिप्पणी करने वालों से दूर रहें। अगर यह संभव न हो (जो कि अधिकांश मामलों में संभव नहीं होता) तो ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान न दें। उनकी टिप्पणियों को नजर अंदाज करें।
* छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें, रोजमर्रा की छोटी-छोटी क्रियाओं में संलग्न होकर मन लगाने का प्रयास करें।
* दिन व्यतीत करने का सुव्यवस्थित टाइमटेबल बना लें, िजसमें नहाने, खाने आदि का भी वक्त नियत हो, ताकि इच्छा न होते हुए भी आप अपने को खींचकर उठा लें और एक चक्र चल पड़े, भले कम गति से ही सही।
* सुबह टहलें, व्यायाम करें, बाहर निकलकर सूर्योदय, सूर्यास्त देखें। शाम को आसपास के बाग-बगीचे, मंदिर आदि में हो आएँ। (चाहें तो िकसी को साथ लेकर) बच्चों को खेलते हुए देखें। छोटे बच्चों को खिलाएँ। सुबह पंछियों को दाना चुगाएँ।
* पुस्तकें पढ़ें, परन्तु भारी-भरकम फिलॉसफी वाली नहीं, न जीवन से विमुख करने वाली, जीवन को व्यर्थ बतानेवाली गहन आध्यात्मिक पुस्तकें, न ही दु:ख व निराशा व बोझिलता बढ़ाने वाली पुस्तकें। सकारात्मक विचारों को जगाने वाली, सरल उदाहरणों से बात समझाने वाली सरल, सादा िकताबें पढ़ें। हँसी-मजाक के प्रसंग इत्यादि भी पढ़ सकते हैं।
* टीवी पर रुलाई-धुलाई वाली कहानियाँ, दुरभिसंधियों, षड्यंत्रों वाले धारावाहिक देखकर अपने मन को और न उलझाएँ।
* खुद को बताते रहें कि सब समय-समय की बात है। जीवन का यह दौर भी गुजर जाएगा।
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