यह एक ऐसे लड़के की दास्तान है जो अपनी देह के पिंजड़े में हमेशा फडफडाता रहता था और उसके भीतर से मुक्त होना चाहता था। नहीं, वह जीवन से छुटकारा नहीं पाना चाहता था। वह पुरुष देह में कैद था मगर उसका मन हमेशा अपने-आप को लड़की के रूप में ही देखता था। दस की उम्र के भी पहले और यह जानकारी हो जाने के भी पहले कि दुनिया में कुछ लोग ट्रांससेक्शुअल
भी होते हैं, उसने हमेशा अपने आप को एक लड़की की तरह ही देखा। उसका स्वप्न था
बड़ा होकर वह एक खूबसूरत, बुद्धिमान लड़की के रूप में विकसित हो। अपने इस रुझान को लेकर उसे समाज और परिवार से बहुत यंत्रणा मिली। उसमें मारपीट
कर लड़कों के 'लच्छन" पैदा करने की कोशिश की गई। उसकी लगातार हंसी उड़ाई गई, अपमानित भी किया गया, मगर वह नहीं 'सुधर पाया" क्योंकि इस बात पर उसका जोर ही नहीं था। उसे प्रकृति ने ही ऐसा बनाया था, 'लड़के के जिस्म में कैद लड़की के रूप में।" हम भारतीयों में तो अर्धनारीश्वर की भी अवधारणा है। हम यह मानते हैं कि हर पुरुष में कुछ प्रतिशत स्त्री का होता है और स्त्री में पुरुष का। पर कभी-कभी ऐसा भी तो होता है किसी में यह प्रतिशत अपनी दैहिक पहचान के विपरीत ज्यादा हो जाए। यहां वर्णित लड़के के साथ ऐसा ही हुआ। अपनी देह के खिलाफ उसके भीतर की नारी हावी रही। किशोरावस्था में आकर तो एक नई ही परेशानी सामने आ गई। वह लड़कियों की तरफ नहीं,
लड़कों की तरफ आकर्षित होने लगा। उसने बहुत कोशिश की लड़कियों से दोस्ती करने की, उनकी तरफ सायास आकर्षित होने की, मगर ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि यह उसका नेचुरुल ऑरिएन्टेशन नहीं था। इस लड़के ने बाद में जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी
करवाई, जिसमें उसे सालों लगे। सर्जरी और हारमोन थैरापी का शारीरिक रूप से बेहद कठिन दौर भी उसने पास किया। पर इस तमिल पुरुष (अब स्त्री) का कहना है कि सर्जरी और थैरापी की यंत्रणा से बढ़कर थी मन से स्त्री होकर पुरुष देह में कैद रहना। अत: ऑपरेशन करवा कर उसने अच्छा ही किया। अब एक संपूर्ण स्त्री के रूप में जीवन यापन करके वह बेहद खुश है।
भले बेहद कम संख्या में, दुनिया में कुछ लोग होते हैं जो अपने शारीरिक और मानसिक जेंडर में अलग-अलग होते हैं। इनमें से बहुत कम लोग होते हैं जो रिआसाइनमेंट सर्जरी जैसा कदम उठा पाने में सक्षम होते हैं। लोगों के पास इस बारे में न जानकारी होती है न पैसा और न सामाजिक-परिवरिक सहयोग। ऐसे लोग बिना अपनी किसी गलती के सामाजिक उपेक्षा, प्रताड़ना, मखौल और घृणा भुगतने के लिए अभिशप्त होते हैं। यह बात कोई नहीं समझ पाता, उनके अपने भी, कि विधाता ने उन्हें ऐसा ही बनाया है।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनका नैसर्गिक सैक्शुअल रुझान सेम सेक्स के लोगों के प्रति होता है। यह बात अधिकांश लोगों के गले नहीं उतरती। बदले में हम उनसे घृणा करते हैं। कईयों को ऐसी बातों से जुगुप्सा भी होती है क्योंकि सदियों से समाज इस बात को ऐसे ही देखता आया है, फिर बहुसंख्य लोग विपरीत सेक्स की ओर ही आकर्षित होते हैं। यही दुनिया का आम चलन है। इसलिए हममें से अधिकांश, या कहें लगभग सभी, उन लोगों को नीची नजर से देखते हैं जो सेम-सेक्स के प्रति आकर्षित होते हैं। मगर इस युग के नए, अग्रणी और आधुनिक व्याख्याकार कहते हैं कि 'चूंकि यह नैर्सिगक रुझान का मामला है तो अप्राकृतिक कैसे हुआ!" यह भी सोचने लायक बात है। इक्कीसवीं सदी में मध्ययुगीन पूर्वाग्रहों के साथ नहीं जिया जा सकता। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं पशु तो सेम जेंडर के साथ सेक्स नहीं करते अत: यह अप्राकृतिक है। मगर ऐसा बहुत कुछ है जो पशु नहीं करते मगर इंसान करते हैं, भद्रता का तकाज़ा है कि उन प्रकियाओं को यहां नहीं गिनाया जाए।
कुछ दशकों पहले तक, हमारी एक दो पीढ़ी पहले के लोग, जब परिवार नियोजन नया चलन में आया तब, इसे पाप मानते थे। इसलिए क्योंकि उनकी मान्यता थी कि दैहिक मिलन सिर्फ संतति पैदा करने के मकसद से ही होना चाहिए। परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग करके देह-सुख के लिए किया गया मिलन गलत है। यह अवधारणा अब पीछे छूट गई है क्योंकि सदियों के साथ बहुत कुछ बदलता है।
रही बात सेम सेक्स के लोगों के मिलन की तो यह अन्य लोगों की स्वतंत्रता है कि लोग उसे पसंद करें, नापसंद करें या उस पर गौर ही न करें। मगर जिनका यह नेचरल ओरिएंटेशन है और जो दो लोग सहमति से साथ हैं, कोई भी बलात कर्म करके किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, मासूम बच्चों को शिकार नहीं बना रहे, उन्हें अपराधी नहीं कहा जा सकता। यह बहुत ही निजी मामला है और व्यक्ति का बुनियादी अधिकार भी। माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गेंद अब संसद के पाले में है। देखना है आगे क्या होता है। तब तक एक प्रजातांत्रिक देश का आम नागरिक इस बात पर चर्चा, विमर्श, विचार तो कर ही सकता है।