गुरुवार, 11 जून 2015

सिर्फ मैगी ही क्यों?

www.hamarivani.com रफ़्तार

टपट भोजन के रूप में लोकप्रिय मैगी नूडल्स इन दिनों बदनामी भोग रह हैं। कई राज्यों में मैगी के नमूनों की जांच में मोनोसोडियम ग्लूटामेट व अधिक मात्रा में सीसा पाए जाने बाद, जगह-जगह मैगी की जांच, प्रतिबंध, स्टॉक लौटाए जाने की खबरें जारी हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि जिन सितारों-माधुरी दीक्षित, अमिताभ बच्चन, प्रिटी जिंटा- ने मैगी के विज्ञापन किए उनके खिलाफ भी प्रदूषित उत्पाद का समर्थन करने के लिए कार्रवाई की जाएगी।

कुछ लोग इस बात को गलत मानते हैं कि विज्ञापन करने वाले सितारों को किसी उत्पाद में कमी के लिए दोष दिया जाए। ऐसा मानने वाले यह तंज भी कर रहे हैं कि क्या सितारे प्रयोगशाला में जांच करवा कर किसी उत्पाद का समर्थन करें? तो इस बात का जवाब है कि हां जरूर! वे पूरा देख-परखकर ही किसी चीज का विज्ञापन करें। इससे उनकी और उत्पाद की दोनों की ही साख बढ़ेगी। जब सितारे व्यक्तिगत हवाई जहाज, याट (खुद का जहाजी बेड़ा) और जाने क्या-क्या खरीदने की कुव्वत रखते हैं तो क्या जिस उत्पाद का वे विज्ञापन करने वाले हैं उसकी जांच पर पैसा खर्च नहीं कर सकते?

ऐसा करना तो दूर, सैकड़ों करोड़ रुपयों के मालिक होने के बावजूद वे स्वयं विग लगाकर ऐसे तेल बेचते हैं जो बाल बढ़ाने का दावा करते हों। क्या विज्ञापन करने वाले सितारे को नहीं मालूम होता कि दो-चार हफ्तों में कोई क्रीम गोरा नहीं करती? मगर नहीं, वे सब तो सरासर झूठे दावों के आधार आटा, तेल, घी, साबुन, टूथपेस्ट, बिस्किट, नूडल सब कुछ बेच रहे हैं। सिर्फ पैसा कूटने के लिए। क्या इन सितारों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे देख-परखकर विज्ञापन स्वीकार करें।

दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि मैगी ही क्यों? बस मैगी हत्थे चढ़ गई तो मैगी और सिर्फ मैगी की थू-थू जारी है। मगर जरा नजरें उठाकर देखें तो आलम यह है कि हमारे आसपास खाने की लगभग हर चीज मिलावट के दायरे में आ चुकी है। दूध, घी, मसाले, और भांति-भांति की तैयार भोज्य सामग्री जो बाजार में बिकती है उनमें से अधिकांश मिलावटी है। जांच तो सभी की होना चाहिए चाहे देसी कंपनी का उत्पाद हो या विदेशी का। बड़ी ब्रांड की चीज हो या आसपास घरेलू उद्योगों में बनने वाली सामग्री। मैगी की जांच हर राज्य में करवाई जा रही है। सबने डर के मारे मैगी बेचने और खाने से अपने हाथ खींच लिए हैं। ऐसी ही जांच हर खाद्य सामग्री की हो तो मिलावट करने वालों को जनता और सरकार की ऐन नाक के नीचे यूं फलने-फूलने की हिम्मत न हो।
-निर्मला भुराड़िया

1 टिप्पणी:

  1. अगर ऐसा हो जाए तो वाकई कमाल हो जाए....वैसे ये सही है..सरकार को ऐसे वि‍ज्ञापन पर रोक लगानी चाहि‍ए।

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